Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ (8) जिनवरवृपभो के कथन को सुनकर दीर्घ ससारी मिथ्यादृष्टि क्या जानते हैं और क्या करते हैं ? प्रश्न २ - जिन-जिनवर और जिनवरवृषभो ने पदार्थ का स्वरूप कैसा और क्या बताया है ? जिसके श्रद्धान से सर्व दुःख दूर हो जाता है ? उत्तर- " अनादिनिधन वस्तुएँ भिन्न-भिन्न अपनी- अपनी मर्यादा सहित परिणमित होती है, कोई किसी के आधीन नही है, कोई किसी के परिणमित कराने से परिणमित नही होती।" जिन-जिनवर और जिनवरवृषभो ने बताया है कि पदार्थों का ऐसा श्रद्धान करने से सर्वदुख दूर हो जाता है । प्रश्न ३ – जिन-जिनवर और जिनवरवृषभो के ऐसे कथन को सुनकर ज्ञानी क्या जानते हैं और क्या करते हैं ? उत्तर - केवली के समान पदार्थों के स्वरूप का ज्ञान हो गया है, मात्र प्रत्यक्ष और परोक्ष का अन्तर रहता है । ज्ञानी अपने त्रिकाली ज्ञायक स्वभाव मे विशेष स्थिरता करके श्रेणी मांडकर सिद्धदशा की प्राप्ति कर लेते है । प्रश्न ४ – जिन-जिनवर प्रौर जिनवरवृषभो के कथन को सुनकर सम्यक्त्व के सन्मुख मिथ्यादृष्टि पात्र भव्य जीव क्या जानते हैं और क्या करते हैं ? उत्तर - अहो - अहो ! जिन-जिनवर और जिनवरवृषभो का कथन महान उपकारी है तथा प्रत्येक पदार्थ की स्वतन्त्रता ध्यान मे आ जाती है । अपने त्रिकाली ज्ञायक स्वभाव का आश्रय लेकर ज्ञानी वनकर ज्ञानी की तरह निज- स्वभाव मे विशेष एकाग्रता करके श्रेणी मांडर सिद्धदशा की प्राप्ति कर लेते है । प्रश्न ५ - जिन-जिनवर और जिनवरवृषभो के कथन को सुनकर दीर्घ संसारी मिथ्यादृष्टि क्या जानते हैं और क्या करते हैं ? उत्तर – जिन-जिनवर और जिनवरवृषभो के कथन का विरोध - C

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 253