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क. मान-बाटिका, या मामके पेडोंका बमीचा ७. धन-वाड़ी, या धन उधान-मवन । ए० कनिंघमने सम्बत् १०११ को सुधारकर और युक्तिपूर्वक सिद्ध कर इसको सं० ११११ पढ़ा है। शिलालेखका पूरा श्लोक प्रो. एफ कीकहोनेने इस तरह शुद्ध किया है:
निजकुलधवलोयं दिव्यमूर्तिः सुशील:
समदमगुणयुक्तः सर्वसत्वानुकम्पी। सुजनजनिवतोषो धनराजेन मान्यः प्रणमति जिननाथं भव्यपाहिल्लनामा ॥१॥]
सुहानिया [ग्वालियर]-संस्कृत ।
- [सं० १०१३=९५६ ई .] संवत् १०१३ माधवसुतेन महिन्द्रचन्द्र केनकभा (खो ? )दिता [सुहानियामें माधवके पुत्र महेन्द्र चन्द्र ने एक जैन मूर्ति प्रतिपित की । संवत् १०१३ ।]
[JASB, XXXI, p. 399, a; p. 410, t.] [ ई० ए० जिल्द ७, पृ० १०१-१११ नं० ३८ १-५१ की पंक्तियाँ ]
लक्ष्मेश्वर-संस्कृत।
[शक ८९०=९६८ ई.] श्रीमत्परमगम्भीरस्याद्वादामोघलाञ्छनं । जीयात्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् ।।
१ यह 'प्रतिष्ठिता' का अपभ्रंश मालूम पड़ता है।