Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 02
Author(s): M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 223
________________ -सुका सुचि - कचड़ [ विना कालनिर्देशका बहुत करके लगभग ११२० ई० ] [ माधवराय मन्दिरके नवरंग मण्डपके चार सम्भोंपर ] ( दक्षिण-पश्चिमी खम्भा ) खस्ति समधिगत- पश्च महा-शब्द महामण्डलेश्वर द्वारावतीपुरवराधीश्वरं यादवकुलाम्बरधुम (उत्तर-पश्चिमी) णि सम्यक्त्वचूडामणि तळेकाडु-गोण्ड भुजबळ वीरगङ्ग विष्णुवर्द्धन-पोसळदेवरु विनयादित्य- दण्ड- (दक्षिण-पूर्व खम्भा ) नायक माडिसिद होयसळ- जिनालयक्के बिट्ट दत्ति श्री-मूलसंघ देशिय गणद पो (पु) स्तक गच्छद कोण्डकुन्दान्वयद श्रीमन्मेषचन्द्र - त्रैविद्य- देवर शिष्यरु (उत्तर-पूर्वी खम्भा ) श्री- प्रभाचन्द्र-सिद्धान्त - देवर्गे संक्रान्तिव्यतीपातदन्दु कालं क ि धारा- पूर्वकं माडि बिट्ट दत्ति हिरिय-केर्रेय केळगे मोदलेरिय गद्दे हचु-सलिगेयदुं ओन्दु सलगे तोण्टेयदुं बसदिय मुन्तन इम्मडलु बेदलेयुमं बलिगट्टमुमं बसदिय बडगण.. (दक्षिण-पूर्वी खम्भा ) विनयादित्यालय .... [ ( अपने उन्हीं पदों सहित) विष्णुवर्द्धन- पोसळ-देवने (उक्त ) भूमिका दाम श्री - मूलसंघ, देशीय-गण, पुस्तक-गच्छ तथा कुन्दकुन्दान्वयके मेrचन्द्र-वि-देवके शिष्य प्रभाचन्द्र- सिद्धान्त-देवको विनयादित्य- दण्डनायकके द्वारा बनवाये गये होय्सल-जिनाकपके लिये किया । ] [EC, V, Hassanth, n° 112] २७६ कोन्नूर (जि. बेळगांव) - कड़-भत [ विक्रमादित्य चालुक्यका ४६ वाँ वर्ष ११२१ ई० ]

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