Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 02
Author(s): M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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जैन-शिलालेख संग्रह योय हेरिंग अग(:)द (न्तर बतिगरु तेगेद हेखि नरेलेवित्तिनितुर्व बिटर तेल्लिगर मान्य-सान्यवेनदे देवर संजे सोडरिंग धूपारितेर्ग माणके सोल्लगे होरगणिं बन्द एण्णेय कोडक्के सोल्लगे यिन्त बिर गण-कुम्भाररु देवर अष्टविधार्थने आहारदान नडवन्तागि दानशालेगे आवगेगळन बिट्टर् हलसिगे-हनि सिरद हेब्बट्टेयल नडेव गात्रिगर देवरिगे अष्टविधार्थने नडवन्तागि हेरिने नूर वोलेय बिट्टर ॥
[IA, XIV, p. 14- 26 (lines 1-56), t & tr.]
२८१-८२-८३ श्रवणबेलगोला-संस्कृत तथा कन्नड़ [शक १०४५=११२३ ई.]
(जै० शि० सं० प्र० भा०)
२८४ होसहोळलु-संस्कृत और कड़ [विना कालनिर्देशका, पर संभवतः लगभग ११२५ ई. का] [ होसहोळलु (कृष्णराजपेट परगना )में, पार्श्वनाथ बस्तिके दक्षिणकी
ओरके पाषाणपर] श्रीमत्परमगम्भीरस्याद्वादामोघलाञ्छनं ।
जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् ॥ भदमस्तु जिनशासनाय । खस्ति समधिगतपञ्चमहाशब्द-महामण्डलेश्वर-द्वारावतीपुरवराधीश्वर-यादवकुलाम्बरद्युमणिसम्यक्त्वचूडामणि मलेपरोळु गण्डाद्यनेकनामालङ्कत.........त्रिभुवनमल्ल तळकाडुगोण्ड मुजबळ वीरगङ्ग होयसळ-देव पृथिवि-यराज्य उत्तरोत्तराभिवृद्धिप्रकीमानमाचन्द्रार्कतारम्बरं सल्लुत्तमिरे गङ्गवाडि-तोम्भतरु सासिरमनेकछत्रच्छायदि पृथ्वी राज्यं गेयुत्तिरलु तत्पादपोपजीवि । खस्ति समस्त

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