Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 02
Author(s): M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 245
________________ कम्बदल्लिका लेख जड़ित चोटियाँ थीं—समन्वित एक विशाल चैत्यालय, तथा मन्दिरकी मरम्मत करने, पूजाका प्रबन्ध करने, ऋषि और वृद्ध स्त्रियोंको माहारदान देने, तथा शीतले रक्षा करनेके लिये - त्रिभुवनमल होयसल देवके हाथोंसे तमाम सुट्टियों व करोंसे मुक्त भूमि गुतिके चित्र और बम्म मनुएसे ५ हणके किराये से लेकर ( उक्त मितिको ), अपने गुरु गण्डविमुक्त-सिद्धान्तदेवके पैरोंका प्रक्षालन करके उन्हें दी । (हमेशाके अन्तिम श्लोक ) मल्लिनाथने इसे लिखा और माणिमोजके पुत्र बलकोजने उत्कीर्ण किया । ] [EC, VI, Mudgere tl., n° 22] २९४ कम्बदहल्लि - कड़- भन्न -- स्वस्ति [ विना काल-निर्देशका, पर सम्भवतः लगभग ११३० ई० ] [ कम्बदहल्लिमें, जैन बस्तिके सामनेके पाषाणपर ] यम-नियम-स्वाध्याय-ध्यान-धारण- मौनानुष्ठान-जप- समाधिशील-गुण-सम्पन्नरप्प श्री - मूलसंघद कोण्डकुन्दान्वयद देशिय - गणद पुस्तक - गच्छद श्री प्रभाचन्द्र सैद्धान्तिकर शिष्यतियरप्प .... ........ कय रुकमव्वे जकवे कन्तियों तव ...निसिधियं माडिसि ..... स्वर्गस्थर ..... *****.***...*. शि० २९ ....... [ ( सर्वसाधुगुणसम्पत्र) प्रभाचन्द्र-सैद्धान्तिककी शिष्याएँ रुकमध्ये और जकम् - कान्तियर की स्मृतिमें • स्मारक बनवाया । ] ....... [EC, IV, Nagamangala tl., no 21] २९५ तगदुरा- कबड़े [ बिना कालनिर्देशका ] (जै० शि० सं०, प्र० मा? (2)

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