Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 02
Author(s): M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 232
________________ कल्लूरगुडका लेख ४२१ निय-गङ्ग-पेाडि-देवम् तम्मज्ज बर्म-देवं माडिसिद मण्डलिय पट्टद-तीर्थद बसदियं कल्लु-वेसनागि माडिसिद पट्टद-बसदिगे सकवर्ष १०४३ नेय शुभकत्-संवत्सरद भाद्रपद-मासद शुद्ध ५ बृहस्पति चारदन्दु कुरुळिय-बसदियादियागि पञ्चविशति-चैत्यालयमं धर्मप्रभावनेयिन्द माडिसिद प्रभाचन्द्र-सिद्धान्त-देवर शिष्यर् मुख्यवागि बिट्ट वृत्ति बसदिय मुन्दे गद्देगळेय मत्तरोन्दु बेद्दलेगळेय मत्तरेरडु बसदियहल्लिय सुङ्कमुमं बिट्टरु मत्तं ननिय-गङ्ग-देवतुं पट्ट-महा-देवि कञ्चल-देवियरुं पद्मावती-देविगे हरसि हेाडि-देवनं हडेदु काणिकेयं तन्नाळ्व नाडूर्गळोळु शर-मित-पणवं कोट्टरा-चन्द्रार्क-तारं-बरं । बुधचन्द्र-पण्डित-देवर गुडम् । मुनिसिं दिग्दन्ति-दन्तङ्गळनवयवदिन्दोत्ति वेगं छळल्लेम् । बिनेगं कित्तेत्तने तारगेगळनदटिन्दालिकल्लन्ददि सू-। सने वार्द्धि-बातमं सुरेने तवुविनेगं पीरने कोपदिं पोय- । यने बेटं पिट्ट-पिट्टागिरे समरदोळी-वीर-पेाडि-देवम् ॥ (हमेशाका अन्तिम श्लोक) [इस समय त्रलोक्यमल्ल-देवका विजयराज्य प्रवर्द्धमान है । गङ्गान्वय (वंश) का अवतार इस प्रकार हुमाः वृषभ-तीर्थ-कालमें जब कि अयोध्यामें इक्ष्वाकु-वंशमें राजा हरिश्चन्द्रको राज्य करते हुए बहुत समय हो गया था, उसका पुत्र भरत हुमा । उसकी पत्नी विजय-महादेवी थी। जब उसको गर्भ-दोहद हुमा तो उसे जोरसे नृत्य करनेवाली लहरोंसे ओतप्रोत, मत्स्य, चक्रवाक पक्षी तथा चमकीले हंसोंसे परित गङ्गामें नहानेकी इच्छा हुई । अपनी इस इच्छाको पूरा करनेके बाद, नौ महीने पूरे होनेपर उसे एक लड़का हुमा । उस लड़केका नाम, चूंकि गङ्गामें नहानेके बाद वह उत्पन हुआ था मतः गादत्त रक्खा गया। गादत्तका पुत्र भरत हुआ और उसका पुत्र गादत्त हुमा । इस गादत्रकी

Loading...

Page Navigation
1 ... 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267