________________
३७६
जैन-शिलालेख संग्रह १ तेलकी चक्कीके साथ, (उक्त) भूमिका दान किया। हमेशाके अन्तिम शोक । यह लेख कनकनन्दि-त्रैविद्य-देवके गृहस्थ-शिष्य, सेनबोव बोग-देवके द्वारा रचा गया।]
[EC, VII, Shimoga tl., n° 89]
. महोबा*-संस्कृत [संवत् १९६९, फाल्गुन सुदि ० (१११२ ई.)] यह लेख संभवतः जयवर्मदेवके कालका होना चहिये, जो, जैसा कि इतिहास कहता है, सिर्फ ४ साल बाद, सं० ११७३ में शासन कर रहा था। [A. Canningham, Reports, XXI, p. 73, a ]
२५३ आलहळ्ळि -संस्कृत तथा कन्नड़-भग्न
[वर्ष ३७ चालुक्य विक्रम १११२ ई.] [मालहळ्ळि (होळलर परगना)में, तलवारके खेतमें पाषाणपर]
श्रीमत्परमगंभीरस्याद्वादामोघलाञ्छनम् ॥
जीयात् त्रैलोक्य-नाथस्य शासनं जिनशासनम् ॥ खस्ति समस्त-भुवनाश्रयं श्री-पृथ्वी-बल्लभं महाराजाधिराज परमेश्वरं परम-भट्टारकं सत्याश्रय-कुळ-तिळकं चालुक्याभरणं श्रीमत्-त्रिभुवनमल्लदेवर विजय राज्यमुत्तरोत्तराभिवृद्धिप्रबर्द्धमानमा चन्द्रार्क-तारम्बरं सलुत्तमिरे कल्याणपुरद-नेलेवीडिनोळ सुख-संकथा-विनोददि राज्यं गेय्युत्तिरे तत्पादपद्मोपजीवि । .
* महोबाके ये (नं० २५२, ३२५, ३३७, ३४१, ३६०, ३६१, ३६५) अतिसंक्षिप्त शिलालेख ए. कनिंघमको भन्न जैन मूर्तियोंके चरण-पाषाणपर मिले थे। इनमेंके कुछ शिलालेख बहुत कामके हैं, क्योंकि उनमें जिस समय मूर्तिका निमोण या प्रतिष्ठा हुई थी उसका काल तथा उस समय शासन करनेवाले राजाका नाम, ये दोनों चीजें दी हुई हैं । कुछमें शासक-राजा का नाम नहीं मिलता, पर कालका उल्लेख मिलता है, कुछमें वह भी नहीं मिलता।