Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 02
Author(s): M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 210
________________ ३८७ चामराजनगरका लेख चोलके अधीनस्थ अम्य तमाम विपक्षी शासकोंको भगा दिया और नाड देशको एक छत्रके नीचे लाकर विष्णुवर्धनको सौंप दिया, जिसपर उसने गणराजसे अपनी इच्छाके माफिक कोई वर माँगनेको कहा । उत्तरमें गङ्गराजने तिप्पूर माँगा। इस प्रकार इच्छानुसार माँगे हुए और दिये हुए तिप्पूका, जो कि गाजलूरु और गौडमेरीके बीचमें है, मूलसंघ, काणूर गण और तिनिणिकगम्छके मेधचन्द्र-सिद्धान्त-देवको दान कर दिया।] २६४ चामराजनगर-संस्कृत तथा काढ़ . [शक १०३९=१११७ ई.] [चामराजनगरमें, पार्श्वनाथस्वामीकी बस्तीके एक पाषाणपर ] श्रीमत्परमगंभीरस्याद्वादामोघलाञ्छनं । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् ॥ स्वस्ति समधिगतपञ्चमहाशब्दमहामण्डलेश्वरं द्वारावतीपुरवराधीश्वरं यादवकुलाम्बरद्युमणि सम्यक्त्व-चूडामणि मलेपरोळगण्डाद्यनेकनामावलीसमलंकृतरप्प श्रीमद्भुजबल वीरगङ्ग विष्णुवर्द्धन बिट्टिग-होय्सल-देवरु गङ्गवाडि-तोम्भत्तरु-सासिर कोङ्गोळगागि एकच्छत्रछयेयिं तलेकाडलु कोळाल-पुरदलु सुख-सङ्कथा-विनोददिं राज्यं गेय्युत्तमिरे । श्रीमत्खामिसमन्तभद्रमुनिपो देवाकलङ्कस्तुतः श्रीपूज्याविरुदात्तवृत्तनिलयो श्री-वादिराजाम्बुधौ । आचार्यो द्रविडान्वयो जिनमुनिश्श्रीमलिषण-व्रती श्रीपालः परिपालिताखिलमुनिस्सोऽनन्तवीर्यक्रमः ॥ जिननिष्ट-दैवमजितं । मुनिपति गुरु पोयसळेशनाब्दनेनल् सद् विनुतं माडिसिदं श्री-। जिनगृहमं पुणस-राज-दण्डाधीशं ॥

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