Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 02
Author(s): M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 186
________________ ३३६ जैन-शिलालेख संग्रह __इभपतियतिरे दक्षिणशुभदोद्यत्करविळासि भासुरतेनं सुभटमदकरटविघटनविभवं चामण्डरायनिरे निज सभेयोळ् ।। शुभमति योगंधरनवोलभयप्रदनय्यणय्यनार्जितसुयशोविभवं निजसभेयोळिरल्प्रभुमन्त्रोत्साहशक्तिगुणसंपन्नं ॥ दुष्टोप्रविनिग्रहदि शिष्टप्रतिपाळनदि निळेयनाळुत्तुं शिष्टेष्टप्रदम्नत्युत्कृष्टदे राज्यगेयुत्तमिरे सेननृपं ।। ___ श्रीरमणीभासि बळत्कारगणाम्भोधिकोण्डनूरोळ् निधिगं भूरमणीमकुटाळंकारदि नेसेदोष्पि तोर्प जिनमन्दिरमं ॥ एसेदिरे माडिसि वृत्तियन सदळमेनलोसेदु बिडिसुतं निधिगं पेलिसिदनदेन्तेन्दडे निजलसदाचार्यान्वयोद्भवप्रक्रममं ॥ श्रीलीलोभनयाक्षि निर्मळदयादेहं गुणोन्मल्लिकामालाकुन्तळभासि भासुरतरश्रीजैनधर्मोद्भवं त्रैलोक्योदरवर्तिकीर्तिविळ सत्स्याद्वादनामांकितं मूलोकक्के निरन्तरं सोगयिकुं श्रीमूलसंघान्वयं ॥ जिनसमयमेम्ब सरसिज वनदोळगलझैपि तोर्प हेमाम्बुजदन्तनुपममेने करमेसेवुदवनियोळ् सद्गुणगणं बळात्कारगणं ।। वारिधिवेष्टिताखिळधरातलशोभितकीर्तितद्बलात्कारगणाम्बुजाकरवनान्तरदल्लि मराळलीलेयिं चारुचरित्रमार्गद जिनेशमुनीश्वरदुद्वपापहारमदेभकुंभविलुठोत्कटशूररनेकरोप्पिदर् ॥ उदयगिरीन्द्रदोळेसेवरतुदितोदयवागि बळेप चन्द्रन तेरदन्तुदियिसिदं कुवळयकभ्युदयकरं तद्गणाद्रियोळ्गणचन्द्रं । पक्षोपवासि देवनयक्षयतन्मुनिपदाब्जमधुकरशीळं रक्षितगुणगणनिळयमुमुक्षुजनानंदियप्प नयनन्दिबुधं ॥ __ आ नयनन्दिय शिष्यं नानाविद्याविळासर्जिततेनं श्रीनारीनाथनवोल् भूनुतना श्रीधराय॑यतिपतितिळकं । तन्मुनिपदाब्जमधुकरनुन्म

Loading...

Page Navigation
1 ... 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267