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दावनगेरेका लेख
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षण्मुख' था ऐसे जगदेकमल्ल वादिराज देव हुए । उनके बाद ओडेय देव, उनके बाद श्रेयांस- पण्डित, और उनके बाद परचक्र विजेता भजित सेनमुनीन्द्र हुए। अद्वितीय कुमारसेन प्रतिप निर्विवाद रूपसे आधुनिक गणधर रूप में प्रसिद्ध थे ।
तार्किक चक्रवर्ती अजित सेन- पण्डित देवके एक गृहस्थ शिष्य राजा तैलुग थे। उनकी प्रशंसा । उनका लघु भ्राता गोविन्द था। उनसे छोटा भाई बोपुग था ।
इन राजाओंने (तैलुग, गोविन्द, बोयुगने ) मिलकर, ( उक्त मिति को) चन्द्रग्रहण के समय, बसदिकी स्थापना की, और उसकी मरम्मत, ऋषिवर्गके आहार, तथा देवकी अष्टविध पूजा के लिये ( उक्त ) दान दिये । वे ही अन्तिम श्लोक 1 ]
[ EC, VIII, Tirthahalli tl, n° 192 j २४९ दावनगेरे (मैसूर) कचड़
[वि० चा० का ३३ वाँ वर्ष = ११०८ ई० ] निम्नलिखित श्लोक मूल लेखकी २१ वीं पंक्ति है:कोळि नाडोळाद कदम्ब दिसायरदागरङ्गळोळ् देगुलकं जिना (य) लयकवारवेगं केरे बावि सत्रकम् । रागदे तन्न पन्नयद सुदोळं दशवन्नवित्तनि
न्तागरमुठ्ठिनं नेगर्द (ब्द) बम्मरसं गुण - रत्नदागरम् ॥ अनुवाद:- "कदम्बके सर्वश्रेष्ठ, सर्वोपरि स्थानोंमें अग्रगण्य कोगळिदेशमें, प्रसिद्ध, बम्मरसने, एक जैनमन्दिर, एक जिनकी वेदी, एक बगीचे, एक तलाव, एक कुआँ ( वापी ) तथा एक दानशाला (सत्रक) के लिए, - 'पद्मय' की, तबतकके लिये जबतक कि वह कर जारी रहे,— arat तमाम चुङ्गीपर 'दशवा" खुशी से दिये ।"
[IA, XXX, p. 107, t. & tr.].
१ 'दशवन्न' से मतलब आधुनिक 'दसवन्द' या 'दशवन्द' से है, जिसका अर्थ मि० राइसने यह किया है कि "जो व्यक्ति किसी तालाबकी मरम्मत या उसका