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सण्डका लेख [देसिग-गण और पुस्तक-गच्छके श्रीघरदेव थे, जिनके शिष्य एलाचार्य थे, उनके शिष्य दामनन्दिभवारक थे, उनके साथी चन्द्रकीर्ति-भट्टारक थे, उनके शिष्य दिवाकरनन्दि सिद्धान्तदेव थे, उनके शिष्य जयकीर्ति-देव थे जिनका दूसरा नाम चान्द्रायणी देव भी था; इन सबका समुदाय इन बसदियोंका मालिक है। जो इस समुदायके अधीन नहीं हैं उन्हें यह समुदाय भगा देगा, बाहर भेज देगा।
चङ्गाब्वने, १८ बिलस्तके दण्डेके नापसे, विक्रमादित्यकी छोड़ी हुई और तोल्लडिकी उत्तरीय नहर या मोरीसे सींची गई तथा परमेश्वरकी दी हुई और रामस्वामीकी छोड़ी हुई १५०० 'कम्म' (एक नापविशेष) जमीन दानमें दी; उसी नापसे बेजिरिंगट्टकी २५० 'कम्म' जमीन बगीचेके लिये, और ५०० 'कम्म' मदुरनहल्लिमें दिये।
[ EC, IV, Yedatore tl., n° 28]
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अङ्गडिकखड़-ध्वस्त । [विना काल-निर्देशका, पर संभवतः लगभग ११.० (?) ई० का]
[भङ्गाडि (गोणीबीड परगना)में, बसदिके पासके पाषाणपर ] भद्रमस्तु जिनशासनस्य श्री."ण गङ्गदासि-सेट्टि सोमदि"" ......."घिय मुडिहिद प.."क्षके मग चटयं निलिसिद सासन
[जिन-शासनका कल्याण हो। गङ्गदास-सेट्टिके मर जानेपर, उसके पुत्र चटयने यह स्मारक उसके लिये खड़ा किया।]
[EO, VI. Midgere tl., n* 10]
२४३ सण्ड-संस्कृत तथा कबाड़-मन . [विना काल-निर्देशका, पर संभवतः लगभग ११००१० का] .
[सण्डमें, वालावके प्रवेश-द्वारपरके एक पाषाणपर]