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मथुराका लेख
विश्व-बिस-हासर् 'पतिहिताभरणम् ॥ शक-नृप-कालातीतसंवत्सरशतङ्गळ् ९४४ नेय दुमुखि ( दुर्म्मति ) संवत्सरद फाल्गुण-मास-सुद्धपञ्चमी-सोमवार पुनर्वसु-नक्षत्रदन्दु गङ्ग-पेर्म्मनडिगलु कर्णाटनाळुत्तमिरे तम्म ख- दोरादन्दु नव जिनालयके पेर्म्मनडि जीवितम् .........द बलोर - कट्टलाळ्वाद केर्रेय मेकं बोप्सि कट्टेय कट्टिसि तूबनिरसि मुन्नं तव... कोळा मज्णु विट्ट दोन्दकेशेंगे मुमं बिट्ट दिनदि कोटि-कविलेयं ब्राह्मणरुं काशियुमनलुकिरे
बहुभिर्वसुधा भुक्ता राजभिस्सगरादिभिः ।
यस्य यस्य यदा भूमिस्तस्य तस्य तदा फलम् ॥
[ इस लेखमें 'पेगंडे- हासम्' के द्वारा, उक्त मितिको, बलोर-कट्टके गहरे तालाब की सीढ़ियोंके बनवाने, बांधके निर्माण कराने, नहर या मोरीके बनाये जाने, तथा.... 'एक 'कोलग' भूमिके देने का जिक्र है । उसके समयमें कर्णाट ( कर्नाटक ) पर गङ्ग पेर्म्मनडि शासन कर रहे थे । यह पुण्यकार्य पेनडिके दीर्घजीवनकी कामनाके लिये उसकी सरकार स्थानमें एक नये जिनालयके रूपमें किया गया था । ]
[ EC, III, Mandya II., n 78]
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मथुरा - संस्कृत
[ संवत् १०८०=१०२३ ई० सन् ]
१ ओ श्रीजिनदेवः सूरिस्तदनु श्रीभावदेवनामाभूत् । आचार्यविजयसिङ्ग
२ स्तच्छिष्यस्तेन च प्रोक्तैः ॥ [ १ ॥ ] वग्रामस्थानादिस्यै स्वसक्तितः ।
सुषाव
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१ संवत्सर 'दुर्मुख' दिया हुआ है: यह स्पष्टतः गल्तीसे लिखा गया है । इसकी जगह 'दुर्म्मति' होना चाहिये जो शक ९४४ से मेल खाता है ।