Book Title: Jain Satyaprakash 1938 12 SrNo 41 Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad View full book textPage 4
________________ [२४८) श्री सत्य श [વર્ષ : गुरुय रसायणकुच्छं, मंगलण्डज्झप्पयाहिणावत। विणइ विसावहभावं, कंचण मिणमट्ठगुणकलियं ॥ ४५ ॥ आयरिया धम्मगुरू, भाववियडगयवहारगुषपसा । शिरिसंघमाणणिजा, सासणविग्धावणोययरा ॥ ४६ ॥ उधसग्गाणलजोगे, अडज्झभावा सुयामियस्साया। णियपरहियाणुकूला, तरुदिटुंतेण णम्मयरा ॥ ४७ ॥ घरदेसणोसहीप, माहुग्गविसावहारनिउणयरा।। कंचणगुणजोगेणं, पीया सूरी मुणेयव्या एणजागण, पाया सरा मुणेयव्या ॥४८॥ णिक्खेवचउक्केहि, तइयपयवियारणा पकरणिजा। आयरियक्खा जेसिं, णामायरिया य ते भणिया ॥४९ ॥ आयरियाणं पडिमा, ठवणायरिया जिणागमे भणिया। समावेयरभेया, ठवणा सिरिंगायमाइणं ॥ ५० ॥ अणुहवणीयं जेहिं, आयरियतं च जेहि मणुद्वयं । दव्वायरिया समए, ते वुत्ता भुषणभाणूहि ॥५१॥ वारससयछण्णवइ, प्पमाणगुणभूसिया य गीयत्था । आराहियसुयजोगा, संसाहियसरिमंतविही ॥५२॥ अहुणा जिणवइमाणू, वर्दृति ण केवलिप्पहाणससी। तत्तपयासयदीवा, आगमछंदा गणाहीसा ॥५३ ।। भयकूवंमि पडते, जणे करालजियाहभरभरिए । वरसिक्खारज्जूआ, समुद्धरंता किवंबुणिही तित्थेसरसामजे, महाहिगारी सयासया सरला। भवतियणिव्वाणरिहा, बिहाववियला अगण्णगुणा ॥५५॥ मुणिगणतत्तिविहीणा, आयोवायप्पवीणणिक्कामा। फलकिरियाजोगावं-चगा सुयत्थप्पयाणपरा ॥५६ ॥ भावामयवरविजा, सरणागयवजपंजरसमाणा। वरसिद्धिभिंगवासा, भावायरिया जलयतुल्ला सिरिगुरुगुणछत्तीसा, छत्तीसीग्गंथवणियसरूवे। पयरणवरसंबाहे, परूधिए वित्थरा वंदे पपरागण्णमुणीहिं, पत्तं पाविजए पयं पुण्णा। ते धण्णा लद्धपया, धण्णयरा लद्धतप्पारा ॥५९ ॥ ते वीरा वरचरणा, णिम्मलयरदसणा महाविउहा। जे सययं बहुमाणा, विहिणा सेवंति सूरिपए ॥६० ॥ आयरियपयवियारो, आगमणोआगमेहि णायव्वा। उवओगधोहकलिओचढमा किरियणिओ अण्णो ॥६१ ॥ Jain Education International www.jainelibrary.orgPage Navigation
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