Book Title: Jain Samaj ka Rhas Kyo
Author(s): Ayodhyaprasad Goyaliya
Publisher: Hindi Vidyamandir Dehli

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Page 8
________________ जैन-समाज का हास Hava क्यों ? न-समाज अपनेको उस पवित्र एवं शक्तिशाली धर्मका धनुयायी बतलाता है, जो धर्म भूले-भटके पथिकों- दुराचारियों तथा कुमार्गरतोंका सन्मार्ग- प्रदर्शक था, पतितपावन था, जिस धर्म में धार्मिक-सङ्कीर्णता और अनुदारुताके लिये स्थान नहीं था, जिस धर्मने समूचे मानव-समाजको धर्म और राजनीति समान अधिकार दिये थे, जिस धर्मने पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों तक उद्धारके उपाय बताये थे, जिस धर्मका स्तित्व ही पतितोद्धार एवं लोकसेवा पर निर्भर था, जिस धर्म के अनुयायी चक्रबर्तियों, सम्राटों और चाचायोंने करोड़ों म्लेच्छ, श्रनार्य तथा सभ्य कहे जाने बाले प्राणियोंको जैन-धर्ममें दीक्षित करके निरामिष भोजी, धार्मिक तथा सभ्य बनाया था, जिस धर्मके प्रसार करने में मौर्य, ऐल, राष्ट्रकूट,

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