Book Title: Jain Samaj ka Rhas Kyo
Author(s): Ayodhyaprasad Goyaliya
Publisher: Hindi Vidyamandir Dehli

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Page 22
________________ 'जैन समाजका ह्रास क्यों ? पदसे विभूषित किया था । यह संवत् १२२० की बात है । ३ - मथुराके एक प्रतिमा लेखसे विदित है कि उसके प्रतिष्ठाकारक वैश्य थे । और उनकी धर्मपत्नी क्षत्रिय - कन्या थी । १७ ४ -- जोधपुर के पास घटियाला ग्रामसे संवत् ६१८ का एक शिलालेख मिला है । कक्कुक नामके व्यक्तिके जैनमन्दिर, स्तम्भादि बनवानेका उल्लेख है । यह कक्कुक उस वंशका था जिसके पूर्व पुरुष ब्राह्मण थे और जिन्होंने क्षत्रिय कन्यासे शादी की थी । (प्राचीन जैन लेख संग्रह ) ५- पद्मावती पुरवालों (वैश्यों) का पौंडों (ब्राहारणों) के साथ अभी भी कई जगह विवाह सम्बन्ध होता है । यह पाँडे लोग ब्राह्मण हैं और पद्मावती पुरवालोंमें विवाह संस्कारादि कराते थे । बादमें इनका भी परस्पर बेटी व्यवहार चालू हो गया । ६--करीब १५० वर्ष पूर्व जब बीजावर्गी जातिके लोगोंने खंडेल - वालोंके समागमसे जैन-धर्म धारण करलिया तत्र जैनेतर बीजाबर्गियोंने उनका बहिष्कार कर दिया और बेटी व्यवहारकी कठिनता दिखाई देने लगी | तब जैन बीजाबर्गी लोग घचड़ाने लगे । उस समय दूरदर्शी खंडेलवालोंने उन्हें सान्त्वना देते हुये कहा कि “जिसे धर्म-बन्धु कहते हैं उसे जाति-बन्धु कहने में हमें कुछभी संकोच नहीं होता है। आज ही से हम तुम्हें अपनी जातिके गर्भ में डालकर एक रूप किये देते हैं ।" इस प्रकार खंडेलवालोंने बीजाबर्गियोंको मिलाकर बेटी व्यवहार चालू कर दिया । (स्याद्वादकेसरी गुरु गोपालदासजी वरैया द्वारा संपादित जैनमित्र वर्ष ६ अङ्क १ पृष्ठ १२ का एक अंश 1 ) ७ - जोधपुर के पाससे संवत् ६०० का एक शिलालेख मिला है ।

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