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जैन-समाजका हास क्यों ?
सम्मिलित होनेमें लोग अपना सौभाग्य क्यों नहीं समझेंगे ?,
ज़माना बहुत नाजुक होता जा रहा है। सबल निबलोंको खाए, जा रहे हैं। बहुसंख्यक जातियाँ अल्पसंख्यक जातियोंके अधिकारोंको छीनने और उन्हें कुचलनेमें लगी हुई हैं । बहुमतका बोलबाला है। जिधर बहुमत है उधर ही सत्य समझा जा रहा है। पंजाब. और बंगाल में मुस्लिम मिनिस्ट्री है, मुस्लिम बहुमत है तो हिंदुओंके अधिकारोंको कुचला जारहा है, जहाँ कांग्रेसका बहुमत है वहाँ उसका बोलबाला है। जिनका अल्पमत है वे कितना ही चीखें चिल्लाएँ, उनकी सुनवाई नहीं हो सकती। इसलिये सभी अपनी संख्या बढ़ाने में लगे हुए हैं । समय रहते हमें भी चेत जाना चाहिए । क्या हमने कभी सोचा है कि जिस तरह हिन्दू-मुसलमानों या सिक्खोंके साम्प्रदायिक संघर्ष होते रहते हैं, यदि उसी प्रकार कोई जाति हमें मिटानेको भिड़बैठी, तब उस समय हमारी क्या स्थिति होगी? वही न, जो आज यहूदियों और अन्य अल्पसंख्यक निर्बल जातियोंकी हो रही है ? अतः हमें अन्य लोगोंकी तरह अपनी एक ऐसी सुसंगठित संस्था खोलनी चाहिए जो अपने लोगोंका संरक्षण एवं स्थितिकरण करती हुई दूसरोंको जैनधर्ममें दीक्षित करनेका सातिशय प्रयत्न करे।
श्राशा है मेरे इस निवेदनकी उपयोगिता पर शीघ्र ही.ध्यान दिया जायगा और जैनसमाजकी संख्या वृद्धि का भरसक प्रयत्न किया जायगा।
१ दिसम्बर ११३८