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जा सकता है ।
'जैम-समाजका ह्रास क्यों १
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उत्पादन शक्तिका विकास करनेके लिये हमें सबसे प्रथम अनमेल तथा वृद्ध विचाहों को बड़ी सतर्कता से रोकना चाहिये | क्योंकि ऐसे विवाहों द्वारा विवाहित दम्पत्ति प्रथम तो जनन-शक्ति रखते हुए भी सन्तान उत्पन्न नहीं कर सकते, दूसरे उनमें से अधिकाँश विधवा और विधुर होजानेके कारण भी सन्तान-उत्पादन कार्यसे वंचित हो जाते हैं । साथ ही कितने ही विधवा विधुर बहकाये जानेपर जैन समाजको छोड़ जाते हैं ।
अत: अनमेल और वृद्धविवाहका शीघ्र से शीघ्र जनाजा निकाल देना चाहिये और ऐसे विवाहोंके इच्छुक भले मानसोंका तीव्र विरोध करना 'चाहिये । साथ ही, जैनकुलोत्पन्न अन्तर्जातियों में विवाहका प्रचार बड़े बेगसे करना चाहिये, जिससे विवाहयोग्य क्वारे लड़के लड़कियाँ क्वारे न रहने पाएँ ।
जब जैन समाजका बहुभाग विवाहित होकर सन्तान उत्पादनका कार्य करेगा और योग्य सम्बन्ध होनेसे युवतियाँ विधवा न होकर प्रसूता होंगी, तब निश्चय ही समाजकी जन संख्या बढ़ेगी ।
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जैन- समाजकी उत्पादन - शक्ति ही क्षीण हुई होती, तो भी ग़नीमत थी, वहां तो बचे-खुचोंको भी कूड़े-करकटकी तरह बुहार कर बाहर फेंका जारहा है ! कूड़े-करकटको भी बुहारते समय देख लेते हैं कि कोई क्रीमती अथवा कामंकी चीज़ तो इसमें नहीं है; किन्तु समाजसे निकालते समय इतनी सावधानता भी नहीं बर्ती जाती। जिसके प्रति भी चौधरी- चुक्रड़ायत, पंच-पटेल रुष्ट हुए थवा जिसने तनिक सी भी जाने अनजाने में भूल की, वही समाजसे पृथक् कर दिया जाता है । इस प्रकार
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