Book Title: Jain Samaj ka Rhas Kyo
Author(s): Ayodhyaprasad Goyaliya
Publisher: Hindi Vidyamandir Dehli

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Page 36
________________ जैन समाजका ह्रास क्यों ? "प्रभो ! ये जितने विद्याधर हैं वे सब श्रार्य जाति के विद्याधर हैं, • अब मैं मातङ्ग [ श्रनार्य ] जातिके विद्याधरोंको बतलाती हूँ श्राप ध्यानपूर्वक सुनें • BASAA ३१ ". "नील मेघ के समान श्याम नीली माला धारण किये मातङ्ग स्तम्भके सहारे बैठे हुए, ये मातङ्गजातिके विद्याधर हैं ॥ १४-१५ ॥ मुर्दों की हड्डियोंके भूषणोंसे भूषित भस्म (राख) की रेणुसे भदमैले और श्मशान [ स्तम्भ ] के सहारे बैठे हुए ये श्मशान जातिके विद्याधर हैं || १६ || बैडूर्यमणिके समान नीले नीले वस्त्रोंको धारण किये पांडुर स्तम्भके सहारे बैठे हुए ये पांडुक जातिके विद्याधर हैं ॥ १७ ॥ काले काले मुग चमको ओढ़े काले चमड़ेके वस्त्र और मालाओं को, धारे कालस्तम्भका श्राश्रय लेकर बैठे हुए ये कालश्वपाकी जातिके विद्याधर हैं ॥ १८ ॥ पीले वर्णके केशोंसे भूषित, सप्त सुवर्ण के भूषणोंके श्वपाक विद्यानोंके स्तम्भके सहारे बैठने वाले ये श्वपाक जातिके विद्याधर हैं ॥ १६ ॥ वृक्षोंके पत्तोंके समान हरे वस्त्रोंके धारण करने वाले, भाँति भाँति के मुकुट और मालाओंके धारक, पर्वतस्तम्भका सहारा लेकर बैठे हुए पार्वतेय जातिके विद्याधर हैं || २० || जिनके भूषण बाँसके पत्तों के बने हुए हैं जो सब ऋतुयोंके फूलों की माला पहिने हुए हैं और वंशस्तम्भके सहारे बैठे हुए हैं, वे वंशालय जातिके | विद्याधर हैं ॥ २१ ॥ महासर्प के चिह्नोंसे युक्त उत्तमोत्तम भूषणों को धारण करने वाले वृक्षमूल नामक विशाल स्तम्भके सहारे बैठे हुए ये वार्क्षमूलक जातिकै विद्याधर हैं ॥ २२ ॥ इस प्रकार रमणी मदनवेगा : द्वारा अपने अपने वेष और चिह्न युक्त भूषणोंसे विद्याधरोंका भेद

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