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जैन-समाजका हास.क्यों ?
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जिससे प्रगट है कि सरदारने जैन मन्दिर बनवाया था । उसका. पिता क्षत्रिय और माता ब्राह्मणी. थी.।.
c-राजा अमोघवर्षने अपनी कन्या विजातीय राजा राजमल्ल ससवाद को विवाही थी । (जैनधर्मकी. उदारता पृ०१३-७१)
जिस धर्म में विवाहके लिये इतना विशाल क्षेत्र था, आज. उसके अनुयायी संकुचित दायरे में फंसकर मिटते जारहे हैं। जैनधर्मको मानने वाली कितनी. ही वैभवशाली जातियाँ, जो कभी. लाखोकी संख्यामें थी,, अाज अपना अस्तित्व खो बैठी हैं, कितनी.ही.जैन-समाजसे पृथक हो गई हैं और कितनी ही जातियोंमें केवल दस-दस पाँच-पाँच. प्राणी. ही. बचे रहकर अपने समाजकी. इस हीन-अवस्थापर आँस बहा रहे हैं ।
भाला जिन बच्चोंके मुँहका दूध नहीं सूख पाया, दान्त नहीं निकलपाये, तुतलाहट नहीं छूटी, जिन्हें धोती बान्धनेकी तमीज़ नहीं, खड़े होनेका शऊर नहीं. और जो यह भी नहीं जानते कि ब्याह है क्या बला ?. उनः अबोध बालक-बालिकाको बज्र हृदय माता-पिताओंने क्या सोचकर विवाह-बन्धनमें जकड़ दिया ? यदि उन्हें समाजके मरनेकी चिन्ता नहीं थी, तब भी अपने लाड़ले बच्चों पर तो तरस खाना था । हा ! जिस समाज-- ने ३६७ ११७ दुधमुंहे बच्चे-बच्चियोंको विवाह बन्धनमें बाँध दिया हो, जिसः समाजने १८७१४८ स्त्री-पुरुपों को अधिकाँशमें बाल-विवाह वृद्ध-विवाह. और अनमेल विवाह करके वैधव्य-जीवन व्यतीत करनेके लिये मजबूर करदिया हो और जिस समाजका एक बहुत बड़ा भाग संकुचित क्षेत्र. होनेके. कारण अविवाहित ही मर रहा हो, उस समाजकी उत्पादन-शक्ति. कितनी.क्षीण दशाको पहुँच सकती है, यह सहज़में ही अनुमान लगायाः