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जैन समाजका ह्रास क्यों ?
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२२-राजा धनपति (क्षत्रिय) की कन्या पद्माको जीवंधरकुमार [वैश्य ने विवाहा था । (क्षत्रचूड़ामणि लम्ब ५, श्लोक ४२-४६)
२३-भगवान् शान्तिनाथ (चक्रवर्ती) सोलहवें तीर्थकर हुए हैं । उनकी कई हज़ार पत्नियाँ तो म्लेच्छ कन्यायें थी। (शान्तिनाथपुराण)
२४-गोपेन्द्र ग्वालाकी कन्या सेट गन्धोत्कट (वैश्य) के पुत्र नन्दाके साथ विवाही गई । (उत्तरपुराण पर्व ७५ श्लोक ३००)
२५-नागकुमारने तो वेश्या पुत्रियोंसे भी विवाह किया था । फिर भी उसने दिगम्बर मुनिकी दीक्षा ग्रहणकी थी (नागकुमार चरित्र) इतना होनेपर भी वे जैनियोंके पूज्य रह सके।
जैनशास्त्रोंमें जब इस प्रकारके सैंकड़ों उदाहरण मिलते हैं, जिनमें विवाह-सम्बन्धके लिये किसी वर्ण जाति या धर्म तकका विचार नहीं किया गया है और ऐसे विवाह करनेवाले स्वर्ग, मुक्ति तथा सद्गतिको प्राप्त हुए हैं; तब एक ही वर्ण, एक ही धर्म और एक ही प्रकारके जैनियोंमें पारस्परिक सम्बन्ध करने में कौनसी हानि है, यह समझ में नहीं पाता ।
इन शास्त्रीय प्रमाणोंके अतिरिक्त ऐसे ही अनेक ऐतिहासिक प्रमाण भी मिलते हैं। तथा
१-सम्राट चन्द्रगुप्तने ग्रीक देशके (म्लेच्छ) राजा सैल्युकसकी 'कन्यासे विवाह किया था । और फिर भद्रबाहु स्वामीके निकट दिगम्बर मुनिदीक्षा लेली थी।
२-बायू मन्दिरके निर्माता तेजपाल प्राग्वाट (पोरवाल) जातिके थे, और उनकी पत्नी मोढ़ जातिकी थी। फिर भी ये बड़े धर्मात्मा थे। २१ हजार श्वेताम्बरों और ३ सौ दिगम्बरोंने मिलकर उन्हें 'संघपति'