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जैन समाजका ह्रास क्यों ?
जैन- समाजको मिटाने के लिये दुधारी तलवार काम कर रही है। एक
र तो उत्पादन-शक्ति क्षीण करके समाजरूपी सरोवरका स्रोत बन्द कर दिया गया है, दूसरी ओर जो बाकी बच्चा है उसे बाहर निकाला जा रहा . है । इससे तो स्पष्ट जान पड़ता है कि जैन समाजको तहस-नहस करनेका पूरा संकल्प ही कर लिया गया है।
जो धर्म अनेक राक्षसी अत्याचारोंके समक्ष भी सीना ताने खड़ा रहा, जिस धर्मको मिटाने के लिये दुनिया भर के सितम ढाये गये, धार्मिक स्थान -भ्रष्ट कर दिये गये, शास्त्रांको जला दिया गया, धर्मानुयाइयोंकोटते हुये तेल कढ़ायोंमें छोड़ दिया गया, कोल्हुत्रोंमें पेला गया, दीवारों में चुन दिया गया, उसका पड़ोसी बौद्ध धर्म भारतसे खदेड़ दिया गया पर वह जैन-धर्म मिटायेसे न मिटा । और कहता रहा
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कुछ बात है जो हस्ती मिटती नहीं हमारी । सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहाँ हमारा |
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-इक़बाल
जो विरोधियोंके असंख्य ग्रहार सहकर भी अस्तित्व बनाये रहा, वहीं जैन धर्म अपने कुछ अनुदार अनुयाइयोंके कारण ह्रासको प्राप्त होता जा रहा है । जिस सुगन्धित उपवनको कुल्हाड़ी न काट सकी, उसी कुल्हाड़ीमें उपवनके वृक्षके बेंटे लग कर उसे छिन्न-भिन्न कर रहे हैं; सच हैबहुत उम्मीद थी जिनसे हुए वह महब क़ातिल । हमारे क़त्ल करने को बने खुद पासवां कातिल ||
- श्रज्ञात्