Book Title: Jain Samaj ka Rhas Kyo
Author(s): Ayodhyaprasad Goyaliya
Publisher: Hindi Vidyamandir Dehli

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Page 31
________________ २६. _ जैन समाजका हास क्य ? जाते हैं : (१) "अभंगसेना नामकी वेश्याने वेश्यावृत्ति छोड़कर जैनदीक्षा ग्रहणकी और स्वर्ग गई । (२) यशोधर मुनिने मछली खानेवाले मृगसेन धीवरको व्रत ग्रहण कराये जिसके प्रभावसे वह मरकर श्रेष्ठ कुलमें उत्पन्न हुआ । (३) ज्येष्ठा आर्यिकाने एक मुनिसे शीलभ्रष्ट होने पर पुत्र प्रसव किया, फिर भी वह प्रायश्चित द्वारा शुद्ध होकर तप करके स्वर्ग गई । (४) राजा मधु अपने माण्डलिक राजाक स्त्रीको अपने यहाँ बलात् रखकर विषय भोग करता रहा, फिर भी वे दोनों मुनि-दान देते थे और अन्तमें दोनों ही दीक्षा लेकर स्वर्ग गये। (५) शिवभूति ब्राह्मणकी पुत्री देववतीकेसाथ शम्भूने व्यभिचार किया, बादमें वह भ्रष्ट देववती विरक्त होकर दीक्षा लेकर स्वर्ग गई । (६) वेश्या-लम्पटी अंजन चोर उसी भवसे सद्गतिको प्राप्त हुआ । (७) मांसभक्षी मृगध्वज और मनुष्यभक्षी शिव- । दास भी मुनि होकर महान पदको प्राप्त हुए । (८) अग्निभूत मुनिने चाण्डालकी अन्धी लड़कीको श्राविकाके व्रत ग्रहण कराये । वही तीसरे भवमें सुकुमाल हुई थी। (E) पूर्णभद्र और मानभद्र दो वैश्य पुत्रोंने एक चाण्डालको श्रावकके व्रत ग्रहण कराये, जिसके प्रभावसे वह मर कर १६ वें स्वर्गमें ऋद्धिधारी देव हुअा । (१०) म्लेच्छकन्या जरासे भगवान् नेमिनाथके चाचा बसुदेवने विवाह किया, जिससे जरत्कुमार हुआ जरत्कुमारने मुनि दीक्षा ग्रहण की थी। (११) महाराजा श्रेणिक पहले बौद्ध थे तब शिकार खेलते थे और घोर हिंसा करते थे, मगर जैन हुए . तब शिकार आदि व्यसन त्यागकर जैन-धर्मके प्रतिष्ठित अनुयायी कहलाये । (१२) विद्युतचोर चोरोंका सरदार होने पर भी जम्बूस्वामीके ।

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