Book Title: Jain Samaj ka Rhas Kyo
Author(s): Ayodhyaprasad Goyaliya
Publisher: Hindi Vidyamandir Dehli

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Page 12
________________ जैन-समाजका हास क्यों ? पाल्य और वृद्धावस्थाके कारण सन्तानोत्पादन शक्तिसे वंचित है। अर्थात् समाजका पौन भाग सन्तान उत्पन्न नहीं कर रहा है। यदि थोड़ी देरको यह मान लिया जाय कि १५ वर्षकी श्रायुसे कमके ३६७१७ विवाहित दुधमुंहे बच्चे बच्चियाँ कभी तो सन्तान-उत्पादन योग्य होंगे ही, तो भी बात नहीं बनती । क्योंकि जब ये इस योग्य होंगे तब ३० से ४० की आयु वाले विवाहित स्त्री-पुरुष, जो इस समय सन्तानोत्सादनका कार्य कर रहे हैं, वे बड़ी श्रायु होजानेके कारण उस समय अशक्त हो जाएँगे । अतः लेखा ज्यों का त्यों रहता है । और इस पर भी कह नहीं जासकता कि इन अबोध दूल्हा-दुल्हिनोंमें कितने विधुर तथा वैधव्य जीवनको प्राप्त होंगे ? जैन-समाजमें ४० वर्षसे कमके आयु वाले विवाह योग्य २५५५१० क्वारे लड़के और इसी आयुकी २०४७५६ क्यारी लड़कियाँ हैं। अर्थात् लड़कोंसे ५०७५४ लड़कियाँ कम हैं । यदि सब लड़कियाँ वारे लड़कोंसे ही विवाही जाएं, तोभी उक्त संख्या क्वारे लड़कोंकी बचती है। और इस पर भी तुर्रा यह है कि इनमेंसे आधीसे भी अधिक लड़कियाँ दुबारा तिबारा शादी करने वाले अधेड़ और वृद्ध हड़प कर जाएँगे, तब उतने ही लड़के क्वारे और रह जाएँगे । अतः ४० वर्षकी आयुसे कमके ५०७५४ बचे हुए क्वारे लड़के और ४० वर्षकी श्रायुसे ७० वर्ष तककी श्रायुके १२४५५ बचे हुए क्वारे लड़के लड़कियोंका विवाह तो इस जन्ममें न होकर कभी अगले ही जन्मोंमें होगा ? अब प्रश्न होता है कि इस मुट्ठीभर जैनसमाजमें इतना बड़ा भाग कारा क्यों है ? इसका स्पष्टीकरण सन् १९१४ की दि० जैन डिरेक्टरीके

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