Book Title: Jain Samaj ka Rhas Kyo
Author(s): Ayodhyaprasad Goyaliya
Publisher: Hindi Vidyamandir Dehli

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Page 11
________________ जैन समाजका ह्रास क्यों ? marawaimansurtamour गई ? और भूकम्पके धक्कोंसे भी ये ही रसातलमें समा गये ? यदि नहीं तो ११ लाख बढ़नेके बजाय ये तीन लाख और घटे क्यों ? इस 'क्यों' के कई कारण हैं । सबसे पहले जैन समाजकी उत्पादनशक्तिकी परिक्षा करें तो सन् १९३१ की मर्दुमशुमारीके अंकोंसे प्रकट होगा कि जैन-समाज में:विधवा ... १३४२४५ विधुर ... ५२६०३ १ वर्षसे १५. वर्ष तकके कारे लड़के १६६२३५, १५ वर्षसे ४०, " ८६२७५ " ४० वर्षसे ७०, ६८६४ १ वर्षसे १५. वर्ष तककी कारी लड़कियाँ १६४८७२ १५ वर्षसे ४० १८६४ " ४० वर्षसे ७० ७ १९७ १ वर्षसे १५ वर्ष तक के विवाहित स्त्री-पुरुष ३६७१७ १५ वर्षसे ४० " " " ४२०२६४ " ४० वर्षसे ७०" " १३६२२४ कुल योग १२५१३४० १२५१३४० स्त्री-पुरुषोंमें १५ वर्षकी आयुसे लेकर ४० वर्षकी आयुके केवल ४२०२६४ विवाहित स्त्री-पुरुष हैं, जो सन्तान उत्पादनके योग्य कहे जासकते हैं। उनमें भी अशक्त, निर्बल और रुग्ण चौथाईके लगभग अवश्य होंगे, जो सन्तानोत्पत्तिका कार्य नहीं कर सकते । इस तरह तीन लाखको छोड़कर ६५१३४० जैनोंकी ऐसी संख्या है जो वैधव्य कुमारावस्था ७८७

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