Book Title: Jain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Author(s): Kumud Giri
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 11
________________ x : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन मल्लिनाथ ९१, मुनिसुव्रत ९२, नमिनाथ ९३, नेमिनाथ ( या अरिष्टनेमि ) ९४, पार्श्वनाथ ९६, महावीर १०२, पूर्वकालीन ( अतीत ) तीर्थंकरों की सूची १०७, पश्चात्कालीन ( भविष्य के ) उत्सर्पिणी युग के २४ तीर्थंकर १०८ । चतुर्थ अध्याय : शलाकापुरुष चक्रवर्ती ११९, भरत चक्रवर्ती ११९, सगर चक्रवर्ती १२२, मधवा चक्रवर्ती १२३, सनत्कुमार चक्रवर्ती १२३, सुभौम चक्रवर्ती १२४, पद्म चक्रवर्ती १२४, हरिषेण चक्रवर्ती १२५, जयसेन चक्रवर्ती १२५, ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती १२६, बलभद्र या बलदेव १२६, नारायण या वासुदेव १२७, प्रतिनारायण या प्रतिवासुदेव १२७, विजय, त्रिपृष्ठ और अश्वग्रीव १२८, अचल, द्विपृष्ठ और तारक १२९, धर्म, स्वयम्भू और मधु १३०, सुप्रभ, पृरुषोत्तम एवं मधुसूदन १३०, सुदर्शन, पुरुषसिंह व मधुक्रीड १३१, नन्दिषेण, पुण्डरीक और निशुम्भ १३१, नन्दिमित्र, दत्त और बलीन्द्र १३२, राम (पद्म), लक्ष्मण ( नारायण ) और रावण १३२, पद्म ( या बलराम ), कृष्ण और जरासन्ध १३७ । पंचम अध्याय : यक्ष-यक्षी एवं विद्या देवी २४ यक्ष १५०, २४ यक्षियाँ १५०, गुजरात - राजस्थान १५२, उत्तर प्रदेश- मध्य प्रदेश १५२, बिहार- उड़ीसा - बंगाल १५३, चक्रेश्वरी १५३, अम्बिका १५४, पद्मावती १५५, कुबेर या सर्वानुभूति यक्ष १५६, विद्यादेवियाँ १५७ । षष्ठ अध्याय : अन्य देवी-देवता ११९-१४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only १४७ - १६४ १६५ - १८९ भवनवासी देव १६५, भवनवासी देव दिगम्बर व श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार १६६, व्यन्तर देव १६६, ज्योतिष्क देव १६८, वैमानिक देव १६८, लोक एवं ब्राह्मण परंपरा के देवी-देवता १६८, इन्द्र १६९, रुद्र १७१, शिव १७१, नारद १७२, www.jainelibrary.org

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