Book Title: Jain Kathao ka Sanskrutik Adhyayan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 15
________________ भगवान महावीर, विश्व चिन्तन और वैज्ञानिक सन्दर्भ ___-डा० गोकुलचन्द्र जैन भगवान् महावीर और उनके चिन्तन का अध्ययन अब तक धार्मिक परिवेश में हुआ है। मेरी समझ से अध्ययन का यह एक पक्ष है। भगवान महावीर और उनके चिन्तन को पूरी तरह समझने के लिए उनका अध्ययन विश्व चिन्तन तथा वैज्ञानिक सन्दर्भो मे किया जाना आवश्यक है। महावीर का जन्म ईसा पूर्व छठी शताब्दी मे हुआ था। यह युग सम्पूर्ण विश्व के लिए विचार-क्रान्ति का युग था। भारत में भगवान् महावीर, महात्मा बुद्ध तथा कुछ अन्य महापुरुषो ने ईश्वरवाद की अबूझ पहेली तथा धर्म मे केन्द्रित सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन के विरुद्ध आवाज उठायी थी। चीन मे लाओत्से और कन्फ्यशियस ने विचार क्षेत्र मे क्रान्ति पैदा कर दी थी। ग्रीस में सुकरात, पाइथागोरस और प्लेटो ने क्रान्ति की आवाज बुलन्द कर रखी थी। ईरान या परसिया मे जरथुस्त्र चिन्तन को नयी दिशा दे रहे थे। अन्य देशो मे भी चिन्तन की धारा प्रकृति के अध्ययन से हटकर व्यक्ति और सामाजिक जीवन की समस्याओ को अध्ययन की ओर मुड गयी थी। इन महापुरुषों के चिन्तन का अध्ययन विश्व-दर्शन की आधार-भूमि के रूप मे किया जाता है। वे विश्व के महान दार्शनिक माने जाते है। महावीर का अध्ययन अभी तक इस प्रकार के व्यापक सन्दर्भ मे नही हुआ। मेरी स्पष्ट मान्यता है कि महावीर ने जो चिन्तन दिया उसका सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन से गहरा सम्बन्ध है। यदि महावीर ने मात्र धर्म को ही नया रूप दिया होता, तो महावीर को जितनी बडी सफलता अपने जीवन मे अपने मिशन या तीर्थ को व्यापक रूप देने में मिली, वह कदापि सम्भव नही थी। इससे भी महत्त्वपूर्ण है महावीर के वाद पच्चीस सौ वर्षों से चली आ रही उनकी जीवन्त परम्परा। यदि सामाजिक जीवन को महावीर का चिन्तन समग्र रूप से व्याप्त न करता, तो इतनी लम्बी अवधि तक उन का चलना सम्भव नहीं था। महावीर के समय मे बुद्ध के अतिरिक्त और भी पॉच महापुरुष भारत में क्रान्ति का वीडा उठाये हए थे। उनको भी गणनायक, संघनायक, तीथेङ्कर, बहुजनसेवी, यशस्वी आदि कहा गया है। किन्तु इनमे से किसी के भी चिन्तन की जीवन्त परम्परा आज मौजूद नहीं है । , अधिकांश तो अपने शास्ता के जीवनकाल मे ही मतप्राय हो गये थे। जो आगे चले, वे भी थोडे समय बाद समाप्त हो गये। महात्मा बद्ध को अपने काल में जितनी सफलता मिली उससे भी अधिक व्यापक प्रसार वाद के युगो में ला। समाट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए संसार व्यापी प्रयल किये। इस सबके बावजूद जिस देश में और जहॉ पर उन्होने अपने मिशन की स्थापना की, वही पर वह नाम शेष हो गया। इसका वडा कारण सोयही प्रतीत होता है कि बुद्ध के चिन्तन ने सामाजिक जीवन को समग्र रूप से व्याप्त नही किया था। इन बातो को ध्यान में रखकर महावीर के चिन्तन का अध्ययन करने के लिए कुछ आधार सूत्र इस प्रकार तोसते हैं

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