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यदि भास्कराचार्यादि अन्यमति सिद्धांत शिरोमणि आदि ग्रंथोमें जैनमतके सिद्धांतका खंडन किया हुवा देखनेमें आता है तो ऐसे अन्यमति मिथ्यास्वियोंके ग्रंथोंपर जैनी कैसा विश्वास रख्खेगा ! विश्वास रखनेसे समयमूढताका दोष उसको लगेगा यह स्पष्ट हैं.
वृहद्दव्य संग्रहके संस्कृत टीकाकार श्री ब्रह्मदेवजी-" जीवादीसदहणं." इस गाथाके नीचे समयमूढताका लक्षण पृ० १५१ में लिखते हैं
" अथ समय मूढत्वमाह-- । अज्ञानिजनचित्तचमत्कारोत्पादक ज्योतिष्कमंत्रवादादिकं दृष्ट्वा वीतरागसर्वज्ञप्रणीतसमयं विहाय कुदेवागमलिंगानां भयाशास्नेहलोभधार्थ प्रणामविनयपूजापुरस्करादिकरणं समयमूढत्वमिति ।"
अर्थात्-अब समयमूढ माने शास्त्र अथवा ,धर्ममूढताको कहते हैं। अज्ञानी लोगों के चित्तमें चमत्कार ( आश्चर्य ) उत्पन्न करनेवाले जो ज्योतिष अथवा मंत्रवाद आदिको देख कर; श्रीवीतराग सर्वज्ञ द्वारा कहा हुवा जो समय ( धर्म ) है उसको छोडकर मिथ्यादृष्टिदेव, मिथ्या मागम और खोटा तप करनेवाले कुलिंगी इन सबका भयसे, वांच्छासे, स्नेहसे और. लोभके वशसे जो धर्मकेलिये प्रणाम, विनय, पूजा, सत्कार मादिका करना उस सबको समयमूढता जानना चाहिये ।
इसपरसे सिद्ध होता है कि-अन्यमति ज्योतिषशास्त्र मंत्रतंत्रशास्त्र इनोंपर भरोसा रखना नहीं, फक्त सर्वमान्य दिगंबर जैनाचाचार्यप्रणीत जैनशास्त्रोंपर ही भरोसा रखना सो ही सच्चा जैनी कहा जायगा ।
केई जैनीपंडित कहते हैं कि--" प्रभातफे समय सूर्यका ताप बहोत कम लगता है और दोपहरको बड़ा प्रखर लगता है व शामको • बहोत कम लगता है इससे सूर्यग्रहके किरणोंमें तीव्रता और मंदता सिद्ध