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जाई राजू पडे है, वहुरि छठीवार आधा किए तिस समुद्रत पिटर्स द्वीपकी अभ्यंतर वेदीत अपना अर्ध चौथाई आठवां सोलवां बत्तीसा भाग संयुक्त पिचहत्तर हजार योजन परे जाइ राज पद है, ऐसे ही पुटके नेता अधिक होई तात आधा आधा अधिकका अनुक्रम करि पिछला समुद्र वा द्वीपकी वेदीत परे नाइ सो रानु पडे है। तहां भाषा आघा. का अनुक्रम करि जहाँ एक योजनका अधिकपणा उपर तहां पर्यंत पिचहत्तर हजारके अर्द्धच्छेद सतरह हो है । बहुरि तहां पीछे उवर्या जो एक योजन ताफे अंगुल करिए तब सात लाख पडसठि हजार होई तिनका आधा आधा क्रमकरि एक गुरु उवर तहां पर्यंत उगणीस अर्ध छेद हो है । तिन सर्व छेदनिकों मिलाय ताका नाम संख्यात किया। बहुरि उवर्या था एक अंगुल ताके प्रदेशकारि साधा माधा अनुक्रम लिये अधिक करतें सूच्यंगुलके अर्थ छेदनिका जो प्रमाण तितनी बार भएं एक प्रदेशिका अधिकपणा आनि रहे सो संख्यात भर सच्यंगुलका अर्द्धछेद मिलाय " संखेज्जरूवसंजुद" इत्यादि गाथा कहै हैं ।।३५६॥
संखेज्जरूत्रसंजुदाईअंगुलछिदिप्पमा जाव ।। गच्छंति दीवजलही पडदि तहो साद्धलक्खेण ॥ ३५७ ॥ संख्येयरूपसंयुतसूच्चंगुलच्छेदप्रमा यावत् ।।
गच्छंति द्वीपजलधयः पतति ततः साधलक्षणेन ॥ ३५७ ॥ . अर्थ-- संख्यातरूप करि संयुक्त ऐसे सच्यंगुलके अर्घ छेदनिका जो प्रमाण यावत होई तावत् ते द्वीप समुद्र पूर्वोक्त अनुक्रम करि अभ्यतर वेदीत परै जाइ राजू पतनरूप क्षेत्रको प्राप्त हो है। तहां पीछे सर्व द्वीप समुद्रनिविर्षे ब्यौढ लाख १५०००० योजन पर अभ्यंतर वेदीत पर नाइ राजू पडै है। कैसे सो कहिए है ॥ अंतधणं गुणगणिय
भादिविहीणं रूऊणुत्ताभनियं" इस करण सत्र करि अंतका धन पिचहत्तर हजार ताकों गुणकार दोय करि गुणे ड्योढ लाख भए तिनम
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