Book Title: Jain Jyotish
Author(s): Shankar P Randive
Publisher: Hirachand Nemchand Doshi Solapur

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Page 128
________________ (१०८) विषं एक उदय होई मागे अवशेष वाईस योजनका इकसठियां भाग रह्या सो अगिला पथव्यास वि दैनां । ऐसे च्यारि योजन प्रमाण वेदिका क्षेत्रभी समाप्त भया आगे वेदिका रहित द्वीप चार क्षेत्र एक सौ छिहत्तर योजन प्रमाण तामैं अभ्यंतर पथन्यास अठतालीसका इकसठिवा भाग प्रमाण समछेद करि घटाएं दश हजार छसै अव्यासीको इकसठिवां भाग प्रमाण होइ १०६८८ बहुरि एक . सौ सत्तरिका इकसठिवां भाग क्षेत्रकी एक दिनगति शलाका होइ तो दश हजार छसै अव्यासीका इकसठिवां भागकी केती दिनगति शलाका होह ऐसें त्रैराशिक किए बासठि.दिनगति शलाका पावै सो इतनाही उदय जानना । : . . ____ अव अवशेष एकसौ अठतालीसका एकसौ सत्तरियां भाग प्रमाण उदय अंश हैं । इनका पूर्वोक्त प्रकार क्षेत्र किए एकसौ मठतालीस योजनका इकसठियां भांग प्रमाण होइ तीह विछवीस योजनका इकसठिवां भाग मात्र क्षेत्र तो वेदिका अर द्वीपफी संघिवि पथव्यास है तहाँ दैनां तब सा पथव्यास संपूर्ण होइ अवशेष एकसौ बाईसका इकसठिवां भागहार करि भाजिए तब दोय योजन पाए सो संधि पथव्यासकै माग अंतरालविर्षे देना । बहुरि तातै पर वासठि दिनगति शलाका हैं तहां तितने ही उदय है। . आण अभ्यंतर पथव्यासविर्षे एक एक उदय है ऐसें वेदिका रहित दीप चार क्षेत्रवि संघि. उदयसहित चौसाठि उदय हो है। ऐसे मिलिकरि उत्तरायणविर्षे सूर्यकै एकसौ तियासी उदयं जाननें । इहां ऐसा. भावार्थ जानना । अंतरका वा पथव्यासका स्वरूप प्रमाण पूर्वे. कधा था तहां लवण समुद्रका चार क्षेत्रविः प्रथम पथव्यास है। आज अंतराल है ताकै भाग अंतराल है ताकै आज पथन्यास है । ऐसे ही क्रम एकसौ

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