Book Title: Jain Jyotish
Author(s): Shankar P Randive
Publisher: Hirachand Nemchand Doshi Solapur

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Page 149
________________ ( १२९ ) aad भए सो अढाई वर्ष व्यतीत भएं एक अधिक मास होह तब तेरह मासका वर्ष होइ । बहुरि ऐसें ही मढाई वर्ष और भए एक मास अधिक होइ । या प्रकार पांच वर्ष प्रमाण जो युग तिहविषै दोय अधिक मास होइ ॥ ४१० ॥ अब पूर्व गाथाका जु अर्थ ताहीको आठ गाथानिकरि वर्णन करें आसाढ पुष्णमीए जुगणिप्पत्ती दु सावणे किण्हे || अभिजिम्हि चंदजोगे पाडिवदिवस म्हि पारभो ॥ ४११ ॥ आपाठपूर्णिमायां युगनिष्पत्तिः तु श्रावणे कृष्णपक्षे ॥ अभिजिति चंद्रयोगे प्रतिपदिवसे प्रारंभो ॥ १११ ॥ अर्थः- आषाढ मासविषै पृन्यौकेँ दिन उपरान्त समय उत्तरायणकी समाप्तता होते पंच वर्ष स्वरूप युगकी निष्पत्ति कहिए संपूर्णता सो हो है । बहुरि श्रावण मास कृष्ण पक्षविषै अभिजित नक्षत्र भर चंद्रमाका योग होते पडिवा दिन दक्षिणायनका प्रारंभ हो है । भावार्थ:-- आषाढ सुदिपून्यौं अपराण्हविषै तौ पूर्व युगकी समासता भइ | बहुरि श्रावण वदि एकै दिन जहां चंद्रमा के अभिजित नक्षत्रका मुक्तिकाल होह तहां सूर्यका दक्षिणायनका आरंभ हो है । सोई नवीन पांच वर्ष स्वरूप जो युग ताका प्रारंभ जानना ॥ ४११ ॥ किस वीथीविपैं किस अयनका प्रारंभ हो है सो कहें हैं— पढमंतिमवीहीदो दक्खिणउत्तरदिगगणपारंभो ॥ आउट्टी एगादीदुगुत्तरा दक्खिणाउट्टी ॥ ४१२ ॥ प्रथमांतिमवीथीतः दक्षिणोत्तरदिगयनप्रारंभः । आवृत्तिः एकादिद्विकोत्तरा दक्षिणावृत्तिः ॥ ४१२ ॥ .

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