Book Title: Jain Jyotish
Author(s): Shankar P Randive
Publisher: Hirachand Nemchand Doshi Solapur

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Page 171
________________ ( १५१ ) मर्थ-" मार्गचारी ॥ कहिए जिनमततै विपरीत धर्मके भाचरनवाले, बहुरि " सनिदानाः " कहिए निदानजिननें किया होइ । बहुरि " अनलादिमृता" कहिए अमि जल झंपापात आदिकतै मूए, बहुरि " अकामनिरिणः " कहिए विना अभिलाष बंधादिकके निमित परीषह सहनादि करि जिनकै निर्जराभई बहुरि " कुतपसः" कहिए पंचाग्नि आदि खोटे तपके करनेवाले बहुरि “शवल चारित्राः " कहिए सदोष चारित्रके धरनहारे जे जीव हैं ते भवत्रय जो भवनवासी व्यंतर ज्योतिषी तिनविर्षे जाय उपजै हैं ।। ४५० ॥ ऐसें ज्योतिर्लोकका अधिकार समाप्त भया। इति श्री नेमिचंद्राचार्य विरचित त्रिलोकसारमें चौथा ज्योतिर्लोकका अधिकार समाप्त भया ॥ ४॥

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