Book Title: Jain Jyotish
Author(s): Shankar P Randive
Publisher: Hirachand Nemchand Doshi Solapur

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Page 126
________________ (१०६) - - - इकसठिा भाग प्रमाण है । पर वीथी चीथनिकै वीचि जितनां चार क्षेत्र विर्षे अंतराल ताका नाम अंतर है सो दोय योजन प्रमाण है। तहां एकसौ छिहत्तरि योजन प्रमाण द्वीप संबंधी चार क्षेत्र वि प्रथम अभ्यंतर पंथव्यास है ताकै आगै प्रथम अंतराल है । ताकै आगे दूसरा पथभ्यास है । ताकै मागै दूसग अंतराल है। ऐसही क्रमते अंतविर्षे तेरसठिवां पथव्यास भर ताके आगे तेरसठिवां अंतराल हो है । पर ताकै माग छन्वीस योजनका इकसठिवां भाग प्रमाण क्षेत्र अवशेष रह्या । बहुरि च्यारि योजन प्रमाण वेदिका संबंधी चार क्षेत्र हैं तामैं चाईस योजन इकसठिवां भाग काढि तिस द्वीप संबंधी अवशेष क्षेत्रवि. जो. चौसाठिवां पथव्यास हो है । चौसाठिवीं वीथी द्वीप पर वेदिकाकी संधिविर्षे है। बहुरि तिस पथव्यासकै भागे चौसठिवां अंतराल है ताके आगे बावन योजनका इकसठिवां भाग प्रमाण क्षेत्रवे दिका चार क्षेत्रवि अवशेष रह्या बहुरि पथव्यास रहित समुद्र चार क्षेत्र तीनस तीस योजन प्रमाण है। तामैं सत्तार योजनका इकसठिवा भाग कादि वेदिका अवशेष क्षेत्र वर्षे जहैं पैंसठवां अंतराल हो है । ताके आगें पथव्यास है ताकै मांगें अंतर है। ऐसे ही क्रमते अंतवि एकसौ तियासीनां अंतराल हो है । बहुरि ताकै माग पथव्यास प्रमाण अवशेष समुद्र चार क्षेत्रविर्षे एकसौ चौरासीवां पथन्यास है । बहुरि इहां जहां पथ व्यास है तहां वीथी जाननी । एक एक वीथीविषे प्राप्त होई सूर्यका दृष्टि विर्षे आवनां ताका नाम उदय जानना । ऐसें एकसौ चौरासी वीथीनिविर्षे एकसौ चौरासी उदय भए । तहां उत्तरायणमैंस्यौं भावता भावता सूर्य अभ्यंतर वीथीविष भावै सो वह उत्तरायणवि गिनि गिनि लिया पर लगता ही दूसरी. बार तहां उदय होइ नाहीं तातै दक्षिणायनविर्षे नाहीं गिना ऐसें करि एकसौ तियासी उदय जाननें ।

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