Book Title: Jain Jyotish
Author(s): Shankar P Randive
Publisher: Hirachand Nemchand Doshi Solapur

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Page 139
________________ ( १९९) चंदो मंदो गमणे सुरों सिग्यो तदो गहा तत्तों ॥ तत्तो रिक्खा सिंग्या सिग्घयरा तारया तत्तो ॥ ४०३ ॥ चंदो मंदो गमने सुरः शीघ्रः ततो ग्रहाः ततः ॥ ततः ऋक्षाणि शीघ्राणि शीघ्रतराः तारकाः ततः ॥४.३॥ अर्थ--सर्वते गमनविर्षे चंद्रमा मंद हैं मंद गमन कर है । ताते सूर्य शीघ्र गमन कर है । तात ग्रह शीघ्र गमन फर हैं, ग्रह ताते नक्षत्र शीघ्र गमन करै हैं । तात अतिशीघ्र तारे गमन कर हैं। ४०३। मार्गे अब चंद्रमा सूर्यके नक्षत्र भुक्तिकों कई हैं।इंदुरवीदो रिक्खा सत्तही पंच गगणखण्डहिया ॥ अहियहिद रिक्खखण्डा रिक्खे इंदुरवि अत्थणमुहुत्ता ।४०१ इंदुरवितः ऋक्षाणि सप्तपष्ठिः पंच गगनखण्डाधिकानि ॥ अधिकहित ऋक्षखण्डानिऋक्षे इंदुरविअस्तमनमुहूर्ताः॥४०. अर्थ:-चंद्रमा सूर्यके गानखण्डनित क्रमत सडसठि पर पांच गगन खण्ड अधिक नक्षत्र निकै एक मुहुर्तकरि गमन अपेक्षा गगनखण्ड है । सो इस अधिकका भाग अपने अपने नक्षत्र खण्डनिको दिएं नक्षत्र ' अर चंद्र वा सूर्यका आसन्न मुहर्तनिका प्रमाण आवै है सो कहिये । एक ही बार चंद्रमा भर नक्षत्र साथि गमनका प्रारंभ किया. तहां एक मुहूर्तवि चंद्रमा तो सतरहसे अडसठि गगनखण्डनिप्रति गमन । किया भर नक्षत्र अठाहस पैतीस गान खण्डनि प्रति गमन किया । वहां चंद्रमा नक्षत मतसठि गगनखण्ड पीछै रह्या । तहां अभिजित नक्षत्र पर चंद्रमा दोऊ साथि गमनका प्रारंभकरि एक मुहूर्तविपै मभित--. तते चंद्रमा सदसठि गगनखण्ड पीछे रखा , बहुरि दुसरा मुहूर्तविष और सतसठि गगनखण्ड पीछे रहा । ऐसें पीछै रहता रहता जितनें कालकरि . छप तीस अभिजितके सर्व खण्डनिको छोडि पीछै रहै तितना काल

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