Book Title: Jain Jyotish
Author(s): Shankar P Randive
Publisher: Hirachand Nemchand Doshi Solapur

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Page 138
________________ (१८) मुहूर्त करि गमन करे तो एक लाख नव हजार माठसै गगनखण्ड विर्षे केते मुहूर्त निकरि गमन कर ऐसें त्रैराशिक किएं सूर्यका परिधिविष भ्रमण करनेका काल साठि मुहूर्त आधै है। . बहुरि नक्षत्र अठारहस..पैतीस गगनखण्ड निविर्षे एक मुहूर्तकरि गमन करै तौ एक लाख नव हजार आठसै गगनखण्ड निवि केते मुहूर्तनिकरि गमन करै ऐसें त्रैराशिक किए नक्षत्रनिका परिधिविर्षे भ्रमण करनेका काल गुणसठि तौ मुहूर्त हाए अर अवशेष पंद्रहस पैंतीसका अठारहवें पैंतीसवां भाग ताका पांचकरि अपवर्तन किए तीनसैं सात मुहूर्तनिका तीनसैं सतसठिवां भाग आया । या प्रकार एक बार संपूर्ण एक परिधि'विर्षे भ्रमण करनेका काल प्रमाण कया ॥ ४०१ ॥ ____ भाग सो एक मुहूर्तकरि अपना अपनां गगनखण्डनिवि गमन करनेका प्रमाण कहा सो कहै हैं अठी सत्तरसयमिदू वावहि पंचअहियकर्म । गच्छति सररिक्खा णभखण्डाणिगिमुहुत्तेण ।। ४०२ ॥ अष्टषष्ठिः सप्तदशशतं इंदुः द्वापष्ठिा पंचाधिकक्रमाणि ।। ..... -गच्छन्ति सूर्यऋक्षाणि नमाखंडानि एकमुहूर्तेन ॥४०२॥ अर्थः-अहसठि अधिक सतरहसै १७६८ गगनखण्डनिकौं चंद्रमा एक मुहूर्तकरि गमन करै है । बहुरि तिनतै बासठि अधिक का अठारहसै तीस गगनखण्ड निकौं सूर्य अर इन पांच अधिक ताका मठा. रहसै पैंतीस गानखण्डनिकों नक्षत्र एक मुहूर्तकरि गमन करें हैं।१२। ... आगें चंद्रमादि तारापर्यंत ज्योतिषीनिकै गमन विशेषका स्वरूप

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