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(६२) छेह अर्धच्छेद और मिलाइए, इनकौं जोडि जो प्रमाण होइ तितर्ने अर्धच्छेदं राजूके अर्धच्छेदनिमस्यौं घटाएं जो प्रमाण होइ तितनां सर्व द्वीप समुद्रसम्बन्धी चंद्रसूर्यादिकनिके प्रमाणल्यावर्नेकों गच्छका प्रमाण जाननां । भावार्थ-यहु पूर्वे द्वीपसमुद्रनिकी संख्या कही तामैं छह घटाएं इहां गच्छका प्रमाण होई ॥३५९ ॥ * माग तिन ज्योतिषी विवनिकी संख्या ल्यावनेवि जो गच्छ कहा ताकी मादि कहैं हैं
पुक्खरसिंधुभयधणं चउघणगुणसयछहत्तरी पमओ ॥ .... “चउगुणपचओ रिणमवि अडकदिमुहमुरि दुगुणकर्म ॥३६० .. , पुष्करसिंधूभयधनं चतुर्धनगुणशतपट्सप्ततिः प्रभवः ॥ · चतुर्गुणप्रचयः ऋणमपि अष्टकृतिमुखसुपरि द्विगुणक्रमं ॥ ... अर्थ-स्थानिकनिका जो प्रमाण सो गच्छ कहिए वा पद कहिए। बहुरि गच्छचिव नो पहला स्थानविर्षे प्रमाण सो थादि कहिये वा प्रभव कहिये वा मुख कहिये । बहुरि स्थानस्थानप्रति जितनां जितनां बधै सो प्रचय कहियें। बहुरि सर्व स्थानका संबंधी वृद्धिका प्रमाण विनां जो मादि ताकौं जोड़ें जो प्रमाण होइ सो आदि धन कहिये । बडुरि सर्व स्थानका संबंधी वृद्धिको नो. जो प्रमाण होइ सो स्तर धन कहिये । सो इहां पुष्कर नामा समुद्रका आदि धन पर उत्तर धन मिलाएं च्यारिका धन चौसठि तीह करि गुण्या हुवा एकसौ छिहत्तर प्रमाण उभय धन को है सो इहां प्रभव जाननां । बहुरि एक एक दीप या समुद्रपति चौगुणा चौगुणा वधती धन है सो प्रचय जानना । बहुरि ऋणवि आठकी कति चौसठि तीह प्रमाण तो मुख जाननां । ऐसे धनराशि ऋण राशिकौं नानि धनराशिविर्षे ऋणराशिकों घटाए स्थानस्थानविर्षे प्रमाण जानना। तहां पुष्कर समुद्रका मादि धन उत्तर 'धन कैसे ल्यावा. सो कहिए हैं