________________
एकसौ छिहत्तरि १७६ । ६४ बहुरि उत्तर गुणकार च्यारि गच्छ पूर्वोक प्रमाण ऐसा छे छे छे ३ इनको ल्याइ ॥ ३६० ॥
इनका संकलनरूप धनको ल्यावता थका सर्व ज्योतिषी विवनिके प्रमाण ल्यावनैका विधान कहे हैं
आणिय गुणसंकलिदं किंचूर्ण पंचठाणसंठवियं ॥ चंदादिगुणं मिलिदे जोइसविनाणि सव्वाणि ॥ ३६१ ॥ आनाव्य गुणसंकलितं किंचिदून पंचस्थानसंस्थापितम् ॥ चंद्रादिगुण मिलिते च्योतिष्कर्षियानि सर्वाणि ॥ ३६१ ॥
अर्थ-.-." प्रदमेते गुणयारे अण्णोणं गुणियरूव परिहोणे । रुऊणगुणेगहिए मुझेण गुणयम्मि गुणगणियं । " इस करण सूत्रकरि गच्छ प्रमाण गुणकारको परस्पर गुणि तामें एक घटाइ ताकौं एक घाटि गुणकारका भाग देई मुरबकरि गुण गुणकाररूप सर्व गच्छके जोडका प्रमाण हो है सो । यहां गच्छका प्रमाण छे छे छे ३ सो इतनी जायगा गुणकारका प्रमाण च्यारि ताते च्यारि अंक मांडि परस्पर गुणिए । तहां इस गच्छविष उपरिका राशि जगणीका अर्ध छेद प्रमाण ऐसा छे छे छ । ३ बहुरि च्यारिकों दोयका संमेदन करिए तब दोय जायगा दोय दोय होई २ | २ तहां " तम्मेतदुगुणे रासी " इस करण सूत्रके न्याय करि तिस जगच्छृणीका अर्घच्छेद राशि छे छे छे ३ प्रमाण दवा माण्डि परस्पर गुणे जगच्छ्रेणी होई । यहरि दोय दोय जायगा दोय दोय थे तातें दूसरीवार भी तैसेंही ऊपरिका राशि छ छे ३ प्रमाण वानिकों परस्पर गुणे जगछ्रेणी होइ और इन दोऊ जगछेणीनिकों परस्परगुणें जगत्मतर होइ । ऐसे ऊपरिका राशिनमाण गुणकारकों परस्परगुणें तो जगत्पतर भया । बहुरि नीचे ऋणरूप राशि गुण्यका साधिक तृतीयभाग मात्र था - तिस वि सतरहतो लाखके अर्धच्छेद थे तिन प्रमाण दोय