________________
-
(४३) ज्योतिनी देवनिका पटलका बाहुल्य कहिए भोटाईका प्रमाण सो दश सहित एकसौ योजन प्रमाण जानना ॥ ३३४ ॥
मार्ग प्रकीर्णक तारानिका प्रकार अंतराल निरूपण हैतारंतर जहण्णं वेरिच्छेकोससत्तमागो दु॥ पण्णासं मज्झिमयं सहस्समुक्कसयं होदि ॥ ३३५॥ तारांतरं जघन्यं तिर्यक् कोशसप्तभागस्तु ।। पंचाशत् मध्यमकं सहस्रमुत्कृष्टकं भवति ।। ३३५ ॥
अर्थः-तारातै ताराके वीषि तिर्यगरूप बरोबरिविष अंतरालजघन्य एक कोशका सातवां भाग, मध्यम पचास योजन, उत्कृष्ट एक हजार योजन प्रमाण हो है ॥ ३३५॥ भय ज्योतिषीनिके विमानस्वरूप निरूपै हैं
उसाणठियगोलगदलसरिसा सव्व जोई सविमाणा ॥ उरि सुरणगराणि य जिणभवणजुदाणि रम्माणि ॥३३६॥ उत्तानस्थितगोलकसदृशाः सर्वज्योतिष्कविमानाः ॥,
उपरि सुरनगराणि च जिनभवनयुतानि रम्याणि ॥३३६॥ __ अर्थ- गोलक जो गोलाताका दल कहिए तिस गोलाकौं वीचिमैं सौं विदारि दोय खण्ड करिए तिसविर्षे नो एक खण्ड सो उत्तान स्थित कहिए तिस आधा गोलाकों ऊंचा स्थापित किया होय चौडा ऊपरि पर ताफी अणी नीचे ऐसे घस्या होइ ताका जैसा आकार तिह समान सर्व ज्योतिषीनिके विमान हैं । वहुरि तिन विमाननिके ऊपरि ज्योतिषी देवनिके नगर हैं । ते नगर निनमंदिरनिकरि संयुक्त हैं। यहुरि रमणीक है ।। ३३६ ॥ ॥ .