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अवस्थितपणौँ कयो है । उत्तर-पूर्वसूत्र में नृकों के पद है ताकाही अर्थका वशते विभक्तिको परिणमन होय नृ रोकात् ऐसो अनुवृत्तिरूप भयो है तात जानिये है । वार्तिक
नृलोके नित्यगतिवचनादन्यत्रावस्थानसिद्धिरिति चेनोमयासिद्धेः ॥ १॥ टीका- स्यान्मतं नृलोक नित्यातय इति वचनादन्यत्रावस्थान ज्योतिषां सिद्धं अतो व हरवस्थिता इति वनमनर्थकमिति तन्न किं कारणमुभयांसिद्धेः नृलोकादन्यत्र पहियोतिषामस्तिस्वमवस्थानं चाप्रसिद्ध अतस्तदुभयसिद्धयर्थ वहिरवस्थिता इन्युच्यते असतिहि वचने नृलोके एव सन्ति नित्यावयश्चैत्यवगम्यत । ___eर्थ-प्रश्न नलोके नित्यगतयः ऐश पूर्व सूत्रमें वाक्य है । ताते . अन्यत्र ज्योतिषीनि का अवस्थान सिद्ध है। यात पहिरवस्थिता ऐसो वचन जो है सो अनर्थक है । उत्तर-सो नहीं है । प्रश्न कहा कारण! | उत्तर-ऐसे माने दोऊनिकी ही प्रसिद्धि होय है यात क्यों कि मनुष्यलो. कतै अन्यत्र बाहिर ज्योतिषीनिको अस्तित्व भर अवस्थान ए दोम्ही अप्रसिद्ध है यात दोऊनिकी सिद्धिकै अर्थ वहिरवस्थिता ऐसे कहिये है । अर निश्चयकरि :या वचननं नहीं होता. संतां मनुष्यलोक कै विषही है . अर नित्यगतिमान है ऐसे ही जानिये ॥१॥१५॥
श्रीमद्विधानन्दिविचित: तत्वार्थ श्लोकवार्तिक अध्याय ४ में
ज्योतिष्क देवताओंके.वर्णन. .. ज्योतिष्काः सूर्याचन्द्रमसौ ग्रहनक्षत्रप्रकीर्णकतारकाच ॥१२॥
ज्योतिष एवं ज्योतिष्काः को वा यावादेरिति स्वार्थिकः कः । ज्योतिः शब्दम्य यावादिषु पाठात् तथाभिधानदर्शनात प्रतिलिंगानुवृत्तिः · कुटीरः समीर इति.यथा । सूर्याचन्द्रमसा इत्यत्रानन्देवताद्वंद्ववृत्तेः ।