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जैन इतिहासको पूर्व-पीठिका मानवीय इतिहासके विषयमें यदि संख्यातीत वर्षों का उल्लेख करें तो इसमें आश्चर्यकी बात ही क्या है ? इसमें कौनसी असम्भाव्यता है ? पुरातत्वज्ञोका अनुभव भी यही है कि मानवीय इतिहास संख्यातीत वर्षोंका पुराना है।
दीर्घ शरीर और दीर्घायु । दूसरा संशय महापुरुषों के शरीर माप और उनकी दीर्घाति दीर्घ आयुके विषयका है । जो कुछ आजकल देखा सुना जाता है उसके अनुसार सैकड़ों हजारों धनुष ऊंचे शरीर के कोड़ाकोड़ी वर्षों की श्रायुपर एकाएकी विश्वाल नहीं जमता। इस विषयमें मैं पाठकोका ध्यान उन भूगर्भ शास्त्रकी गवेषणाऑकी ओर आकर्षित करता हूँ जिनमें प्राचीन कालके बड़े बड़े शरीरधारी जन्तुओका अस्तित्व लिख हुआ है । उक्त खोजोले पचास पचाल लाठ साठ फुट लस्बे प्राणियों के पाषाणावशेष ( Fossils) पाये गये हैं। इतने लम्बे कुछ अस्थिपञ्जर भी मिले हैं। जितने अधिक दीर्घकाय ये अस्थिपंजर व पाषाणावशेष होते हैं वे उतने ही अधिक प्राचीन अनुमान किये जाते हैं। इससे यही सिद्ध होता है कि पूर्वकालमें प्राणी दीर्घकाय हुआ करते थे। धीरे धीरे उनके शरीरका हास होता गया। यह हास-क्रम अभी भी प्रचलित है। इस नियमके अनुसार जितना अधिक प्राचीनकालका मनुष्य होगा उसे उतना ही अधिक दीर्धकाय मानना न केवल युक्तिसंगत ही है, जिन्तु आवश्यक है।
माणिशास्त्रका यह नियम है कि जिस जीवका भारी शारि