Book Title: Jain Itihas ki Purva pithika aur Hamara Abhyutthana
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
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हमारा इतिहास
इतिहास साहित्यका एक बड़ा महत्वपूर्ण अंग है, और देश व जाति का जीवन - रस है । जिस साहित्य में इतिहास नहीं, वह साहित्य अपूर्ण है । जो जाति अपना इतिहास नही जानती उसके जीवन में चैतन्य, स्फूर्ति, स्वाभिनान और आशा का अभाव सा रहेगा | जबतक हम अपनी सभ्यता और शिष्टता के विकास-क्रम से अनभिज्ञ हैं, तबतक हम उसमें वास्तविक उन्नति नही कर सकते । इसलिये यह अत्यंत आवश्यक है कि हम अपने साहित्य में इतिहास के अंगको खूब पुष्ट करें और तत्संबन्धी त्रुटियों और प्रचलित भ्रमात्मक धारणाओं को दूर करने की ओर सदैव ध्यान देते रहे ।
सभ्यता के जितने अंग हैं उन सबका इतिहास हमारे साहित्य में होना नितान्त आवश्यक है । सभ्यता के मुख्य अंग हैं समाज और राजनीति, धर्म और सदाचार तथा विज्ञान और भाषा । इन सभी विषयोंपर विद्वान् लेखकोंद्वारा हिन्दी में अबतक बहुत कुछ साहित्य तैयार हो चुका है। रायबहादुर गौरीशंकरजी ओझाने पहले ही पहल बड़े परिश्रम और खोजसे 'भारतीय प्राचीन लिपिमाला' प्रस्तुत करके शिलालेखों व ताम्रपों आदि के पढ़े जानेका मार्ग सुलभ वना दिया । उनका यह ग्रंथ डा. बुलर की Indian Palaeography से भी पूर्व बन चुका था। ओझाजी अभी जो राजपुतानेका इतिहास लिख रहे

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