Book Title: Jain Itihas ki Purva pithika aur Hamara Abhyutthana
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 39
________________ ८०] संयुक्त प्रान्त की प्रसिद्ध नगरी 'कौशाम्बी ' है जहां पद्मप्रभ तीर्थकर का जन्म हुआ था व जिनके तप और ज्ञान कल्याणक निकटवर्ती ' प्रभाक्षेत्र ' नामक पर्वत पर हुए थे । ' पद्मप्रभ' के नाम से ही यह स्थान अब पपौला व फफौसा कहलाता है । इसी प्रकार किष्किन्धापुर ( खुखुन्दो ), रत्नपुरी कम्पिला आदि अतिशय क्षेत्र इस प्रांत में विद्यमान है। अंतिम केवली जम्बू स्वामी की निर्वाण भूमि भी इसी प्रांत के भीतर मथुरा के पास चौरासी नामक स्थान पर है जहां अब भी उनके नाम का विशाल मंदिर बना हुआ है। इनमें से कई नगरों में अब भी कुछ न कुछ जैन स्मारक पाये जाते हैं । पर अब तक जितने प्राप्त हुए हैं वे प्रान्त की प्राचीनता व जैन धर्म से घनिष्ठता को देखते हुए कुछ भी नहीं है । हमें पूर्ण आशा है कि यदि विधिपूर्वक खोज की जाय तो असंख्यात जैन स्मारक मिल सकते हैं जिनसे जैन इतिहास का मुख उज्ज्वल हो सकता है व जैन पुराणों की प्रमाणिकता सिद्ध हो सकती है। कौशाम्बी के ही विषय में सर विन्लेन्ट स्मिथ का मत देखिये । वे अपने एक लेख में लिखते हैं "I feel certain that the remains at Kosam in the Allahabad district will prove to be Jain for the most part and not Buddhist as Cunningham supposed. The village undoubtedly represents the Kausambi of the Jains and the site where Jain temples exist is still a place of pilgrimage for the votaries of Mahavira. I have shown good reason for believing that the Buddhist Kausambi was a different place (J. R A. S., July 1898). I commend the study of the antiquities at Kosam to the special attention of the Jain community".

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