Book Title: Jain Itihas ki Purva pithika aur Hamara Abhyutthana
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 45
________________ २०] संस्कृति-रक्षा और दूसरी ओर ज्ञात साहित्यका प्रकाशन | अभी नागोर आदि कितनेही शास्त्र भंडार ऐसे हैं जो वर्षोंले खुले नहीं और जहां के ग्रंथोंका अभीतक हमें कुछमी परिचय नहीं है। ऐसे अंथोंको देखकर उनकी सूची आदि बनाना चाहिये और उनको आगे सुरक्षित रखनेकी व्यवस्था करना चाहिये। इस सम्बन्धमें मैं पाठकोका ध्यान इस बातपर आकर्षित करना चाहता हूं कि प्राचीन ग्रंथोको सुरक्षित रखने और उनकी कापियां सुलभ करने का हमे आजकल एक बहुत अच्छा साधन उपलब्ध है। लिखित कापी कराकर ग्रंथोद्धार करना आजकल बड़ा कठिन है। लेखकों को पुरानी लिपि पढनेका अभ्यास नहीं रहता, इससे वे शुद्ध लिख नहीं सकते। भंडारोले ग्रंथ दीर्घ समयके लिये मिलना कठिन होता है, इससे वे जल्दी में लिखे जाते हैं। और फिर एकसे दूसरी कापी करानेमें वही कठिनाई उपस्थित होती है। खर्चभी बहुत लगता है। मैने प्राकृत ग्रंथोंकी कुछ आधुनिक ऐसी अशुद्ध प्रतियां देखी हैं जिनपरसे उस ग्रंथका संशोधन करना उसी भाषामें नया ग्रंथ लिखनेलेसी अधिक कठिन है। उनके संशोधन के लिये अन्य आदर्श प्रतियोंकी आवश्यकता बनी ही रहती है । अतएव हमें प्राचीन ग्रंथोंकी कापियां अब फोटो द्वारा कराना चाहिये। ग्रंथों का फोटो बहुत जल्दी और बिलकुल उसी रूप में सुलभताले लिया जा सकता है। हजारों पृष्ठोंके ग्रंथको आप कुछ घंटों में फोटोग्राफ करा सकते है, और निगेटिव सुरक्षित रखकर जब जितनी प्रतियां आप चाहे छाप सकते हैं । इसके पश्चात् आदर्श प्रतिकीभी कुछ जरूरत शेष

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