Book Title: Jain Itihas ki Purva pithika aur Hamara Abhyutthana
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 37
________________ ७८] जैन धर्म का प्रसार इसी पक्ष में दी है और मि० ही स्मिथ भी अन्त में इस मत की ओर झुके हैं। इस प्रकार श्रवण बेलगुल के लेख जैन इतिहास के लिये बड़े महत्व और गौरव के प्रमाणित हुए हैं। उनके विना महाराज चन्द्रगुप्त का जैनी होना सिद्ध करना असम्भव होता। ___यह केवल उन मुख्य मुख्य प्राचीनतम लेखों का परिचय है जिनने जैन इतिहास पर विशेष प्रकाश डाल कर उसके अध्ययन में एक नये युगका प्रारम्भ कर दिया है व इतिहासज्ञों की सम्मति-धाराय वदल दी हैं। इनके अतिरिक्त विविध स्थानों में भिन्न भिन्न समय के सैकड़ों नहीं लहस्रो जैन लेख व अन्य जैन स्मारक ऐसे मिले हैं जिनले प्राचीन काल में जैन धर्म के प्रभाव व प्रचार का पता चलता है। वे सिद्ध कर रहे हैं कि जैन धर्म का भूतकाल जगमगाता हुआ रहा है। वह बहुत लमय तक राज-धर्म रह चुका है। इसकी ज्योति क्षत्रियों ने प्रभावान् बनाई थी और क्षत्रियों द्वारा ही इसकी पुष्टि और प्रसिद्धि हुई थी। मगध के शिशुनाग वंशी व मौर्य वंशी नरेशो, व उड़ीसा के महाराजा खार बेल के अतिरिक दक्षिण के कदम्ब, चालुक्य, राष्ट्रकूट, रह, पल्लव, सन्तार आदि अनेक प्राचीन राजवंशों द्वारा इस धर्म की उन्नति और ख्याति हुई, ऐसा लेखों से सिद्ध हो चुका है। पर यह सब ऐतिहासिक सामग्री अंग्रेजी में 'एपीनाफिआ इण्डिका' 'एपीग्राफिआ कर्नाटिका' 'इण्डियन एन्टीवेरी' 'ऑकिलाजिकल सर्वे रिपोर्ट' आदि भारी भारी पत्रिकाओं में विखरी पड़ी है जो हिन्दी के पाठको


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