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हमारा इतिहास
चढी बढी और निराली थी, तथा जो आर्य लोगों को प्रारम्भ में कुछ विलक्षण सी जँचती थी। पर धीरे धीरे आर्य लोग उनसे मिलने जुलने लगे और उनकी कन्याओं को भी विवाहने लगे । ये कन्यायें बड़ी सुन्दर और शिष्ट समझी जाती थीं । नागों का एक उन्नति-शील और राजकीय सत्ता रखनेवाला दल एक समय उस स्थान पर भी प्रतिष्ठित था जहां हम और आप आज उनका ऐतिहासिक विवेचन करने के लिये सम्मिलित हुए हैं। यह बात अन्य प्रमाणों के अतिरिक्त ' नागपुर ' नाम और उसके आसपास की भूमि से अबतक गूंज रही है । नागपुर के पास ही रामटेक पर शायद नागों की वह राजधानी रही है जो पुराणों में पाताल लोक की राजधानी भोगवती के नाम से प्रसिद्ध है । यहीं पर कदाचित् नागों का एक बड़ा भारी विद्या का केन्द्र था जिसे हम यदि नाग यूनीवर्सिटी कहें तो अनुचित न होगा। वहां कैसी कैसी कलायें सिखाई जाती थीं उनका नागकुमार-चरित में उल्लेख है । वहां उक्त काव्य के नायक नागकुमार के समान दूसरे दूसरे प्रदेशों से विद्यार्थी विद्यो पार्जन के लिये आते थे। नागों का ध्वज - चिन्ह सर्प था जिससे 'नाग' सर्प का पर्यायवाची शब्द बन गया । इस इतिहास की दृष्टि से यह बहुत ही उपयुक्त जँचता है कि नागों के विद्याकेंद्र के स्थानापन्न नागपुर विश्वविद्यालय ने भी सर्प को अपना विशेष चिन्ह स्वीकार किया है । दूसरे अपभ्रंश व इतर काव्यों व शिलालेखों से यह भी सिद्ध होता है कि इस नाग राज्य की सीमा से लगे हुए विद्याधर व असुर वंशों के राज्य भी थे, इत्यादि । इस प्रकार इस अपभ्रंश साहित्य के परिशीलन और अध्ययन से हिन्दी भाषा और देशीय इतिहास दोनों पर अच्छा प्रकाश पड़ता है ।
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