Book Title: Jain Itihas ki Purva pithika aur Hamara Abhyutthana
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 21
________________ १८] प्राचीन इतिहास निर्माण के साधन लभ्यता का पूरा इतिहास नहीं लिखा जा सकता। रोम और ग्रीस (यूनान) की प्राचीन सभ्यता का पूरा चित्र-पट खींचना भी इसी कारण बहुत कठिन हुआ है, क्योंकि उसका भी सिलसिला आज से बहुत पहिले टूट गया है । किन्तु भारतवर्ष की आर्यजाति का हाल दूसरा ही है । यहां के वर्तमान रीतिरिवाज, रहन-सहन, धर्म, कर्म, ज्ञान, कला-कौशल, नीति इत्यादि प्रतिदिन के कार्यों पर प्राचीनता की ऐसी छाप लगी हुई है कि भूतकाल से पृथक् वर्तमान भारत का कोई मतलब ही नहीं होता। अभी तक भारत का शृङ्खलाबद्ध इतिहास तैयार किये बिना देश की अवस्था को समझने का जो प्रयत किया गया है, उसका वही फल हुआ है, जो ऊपर कही हुई कहानी से दर्शाया गया है । इतिहास - निर्माण की अभिरुचि । जब अठारहवीं शताब्दि के मध्य भाग में कुछ पाश्चात्य विद्वानों को भारत का इतिहास तैयार करने की रुचि हुई, तब उन्हें मुसलमानी काल के पूर्व की कोई भी घटना, कोई स्मारक, कोई ग्रंथ व कोई ऐतिहासिक व्यक्ति ऐसा नहीं मिलता था जिसका कि समय सन्देहास्पद न हो । अतएव लोगों की यह धारणा हो गयी कि भारतीयों का, मुसलमानी समय से पूर्व कां, कोई इतिहास ही नहीं है, मानो आर्य सभ्यता का श्रीगणेश चारहवीं शताब्दि में ही हुआ हो । यह भूल बहुत समय तक बनी रही । इसका कारण एक तो यहां के पण्डितों की इतिहास की ओर उदासीनता थी, और दूसरा योरप के लोगों का यहाँ

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