Book Title: Jain Itihas ki Purva pithika aur Hamara Abhyutthana
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 24
________________ प्राचीन इतिहास निर्माण के साधन [२१ में बहुतायत से उपयोग में लायी गयी धातुओं के समझने से बहुत कुछ स्पष्ट हो जाती है। उनका मत है कि सबसे प्रथम मनुष्य अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ, जैले, औद्योगिक औजार, लड़ाई के हथियार, घड़े इत्यादि, पत्थरों की बनाया करते थे। इस काल को वे पाषाणकाल ( Stone Age) कहते है। धीरे धीरे ये ही पत्थर की वस्तुएँ सुडौल और चिकनी बनायी जाने लगीं । क्रमशः मनुष्य ने काँसा धातु का और फिर आगे चल. कर लोहे का उपयोग लीखा । ये दोनो काल क्रम से काँसाकाल ( Bronze Age) और अयस्काल व लोह-काल ( Iron Age) कहलाते हैं। इसी अयस्काल से मनुष्य की चमत्कारिक सभ्यता का इतिहास प्रारम्भ होता है। योरप, मिसर और पश्चिमी एशिया के कुछ देशों में तो इन तीनों काली के चिन्ह मिले हैं, किन्तु भारतवर्ष में कॉस की कोई प्राचीन वस्तुएँ नहीं मिली। इसीसे माना जाता है कि भारतवर्ष में काँला-काल आया ही नहीं । काँसे के स्थान में यहाँ तांबे के उपयोग के प्रमाण उपलब्ध हुए हैं । इससे अनुमान किया जाता है कि यहाँ पापाण के पश्चात् ताँवा काम में लाया जाने लगा । यही भारत का ताम्र-काल है। उसके बाद लोहे का उपयोग बढ़ा । सवसे पहिले यहाँ सन् १८६१ ईसवी में मिले० मसुरियर ने कोई वस्तु पापाण-काल की खोज निकाली थी। इसके पश्चात् धीरे धीरे दक्षिण के प्रान्तों में बहुतेरी चीजें ऐसी मिली है, जिन्हें पुरातत्वज्ञ पाषाण-काल और लोह-काल की अनुमान करते हैं । सन् १८७० ईसवी में ताँबे के ४२४ हथियार और औजारों की एक पेटी मध्यभारत के गंगेरिया नामक स्थान

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