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जैन धर्म का प्रसार
जो लोग इतिहास के महत्व से अनभिन्न है वे प्रश्न कर लकते हैं कि बहुत समय के पुराने खंडहरों, टूटी फूटी मूर्तिओं व अस्पष्ट, अपरिचित लिपियों और भाषाओं में लिखे हुए शिलालेखों के पतों और विवरणों से पुस्तकों के सफे भरने ले क्या लाभ ? ऐसे भोले भाइयों के हितार्थ इतिहास की महत्ता बताने के लिये मैं केवल इतना ही कहना पर्याप्त लमझता हूं कि यह उज्वल इतिहास की ही महिमा है जो बौद्ध धर्म, जिसका कई शताब्दियां हुई हिन्दुस्थान से सर्वथा नाम ही उठ गया है, आज भी विद्वत् समाज में बहुत मान और गौरव की दृष्टि से देखा जाता है, और जैन धर्म, जो कि बौद्ध धर्म से कहीं अधिक प्राचीन है, जिसकी सत्ता आज भी भारतवर्ष में अच्छी प्रबलता से विद्यमान है, जिसकी फिलासफी बौद्ध व अन्य कितनी ही फिलासफियों की अपेक्षा बहुत उच्च और वैज्ञानिक है, व जिलका साहित्य भारत के अन्य किसी भी साहित्य की प्रतिस्पर्धा में मान से खड़ा हो सकता है, ऐसा जैन धर्म, अभी तक बहुत कम विद्वानों की रुचि और सहानुभूति प्राप्त कर सका है । बौद्ध धर्म के इतिहास पर इतना प्रकाश पड़ चुका कि उसपर विद्वानों की सहज ही दृष्टि पड़ जाती है। पर जैन धर्म का इतिहास अभी तक भारी अंधकार में पड़ा है जिससे उसे संसार में आज यह मान प्राप्त नहीं है जिसका कि वह न्याय से भागी है।