Book Title: Jain Itihas ki Purva pithika aur Hamara Abhyutthana
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 32
________________ प्राचीन इतिहास निर्माण के साधन [५९ भारत के प्राचीन इतिहास-निर्माण के लिए मुख्यतया ये ही चार साधन उपलब्ध हैं। आर्य-साहित्य की ऐतिहासिक सामग्री का उपयोग बहुत सावधानी और आलोचनात्मक बुद्धि ले करना चाहिए, क्योंकि इसमें अतिशयोक्ति, परस्पर विरोध और कल्पनाशकि बहुत पाई जाती है। विदेशियों के कथन बहुतायत से विश्वसनीय हैं । पर कुछ काल के इतिहास पर ये साधन कुछ भी प्रकाश नहीं डालते। शिलालेख, ताम्रपत्र इत्यादि का ऐतिहासिक वृत्तान्त सर्वथा माननीय है और जिस समय के शिलालेख अथवा ताम्र. पत्र उपलब्ध हैं, उस समय के लिए इन्हें प्रधान प्रमाण मानना चाहिए और इन्हीं के प्रकाश में अन्य साधनों के तथ्य का निर्णय करना चाहिए । सिक्कों में ऐतिहासिक वार्ता आने के लिए बहुत कम क्षेत्र है, पर फिर भी इनकी ऐतिहासिक उपयोगिता बहुत महत्व की है। ये शिलालेखों की पूर्ति करते हैं और खयम् उनसे पूर्ण किये जाते हैं। ऊपर के लेख में यही बतलाया गया है कि इन चार साधनों से किस-किस प्रकार की ऐतिहासिक सामग्री उपलब्ध होती है और जो कुछ ऐतिहासिक वार्ता दी गयी है, वह केवल उदाहरण-स्वरूप है। इससे यह नहीं समझना चाहिए कि इन साधनों से अभी तक केवल इतना ही इतिहास सम्पादित किया गया है। namawesome -

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