Book Title: Jain Itihas ki Purva pithika aur Hamara Abhyutthana
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

View full book text
Previous | Next

Page 27
________________ प्राचीन इतिहास निर्माण के साधन [ ३३ चलाया । हूणवंशी मिहिरकुल का जैन-पुराणों के कल्किराज सिद्ध हो जाने से मिहिरकुल के समय-निर्णय से बहुत सहायता मिलती है । काव्य-ग्रन्थ आर्य - साहित्य में ऐतिहासिक सामग्री समय समय पर लिखे गये काव्य, नाटक, चम्पू आदि ग्रन्थों से भी मिलती है । सन् १९४९ ईसवी के लगभग लिखी गयी कल्हण पण्डित की राजतरंगिणी में पुराणों के अनुसार महाभारत काल से लगाकर लेखक के समय तक का इतिहास संस्कृत-पद्य में दिया गया है। प्रारम्भ में कल्हण ने अपनेसे पहिले के बड़े बड़े इतिहास-लेखकों के नाम दिये हैं व उनके ग्रन्थों के गुण-दोष बतलाये हैं । इसके अनुसार सुवृत्त, क्षेमेन्द्र, नीलमुनि, हेलाराज, पद्ममिहिर और छविल्लाकर नामके मुनियों ने बड़े बड़े इतिहास लिखे थे, जिनमें से, जान पड़ता है, कुछ कल्हण कवि को उपलब्ध थे । पर अब इनके ग्रन्थों का पता नही चलता । राजतरंगिणी के कथन छठवीं शताव्दि से लगाकर बारहवीं शताब्दि तक के लिए तो बहुत ठीक ज्ञात होते हैं, पर इसके पूर्व के इतिहास में यहाँ भी पुराणों जैसी गड़बड़ी पायी जाती है। इसके अनुसार सम्राट् अशोक ईसा के पूर्व बारहवीं शताब्दि में हुए । पर इस राजा का ईसवी सन् के पूर्व तीसरी शताब्दि में होना सिद्ध हो चुका है। इसी प्रकार मिहिरकुल के भारत- आक्रमण का समय ईसवी सन् के पूर्व छठवीं शताब्दि मैं बतलाया गया है, जो यथार्थ में इस समय से एक सहस्त्र

Loading...

Page Navigation
1 ... 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47