Book Title: Jain Itihas ki Purva pithika aur Hamara Abhyutthana
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 29
________________ ४८ प्राचीन इतिहास निर्माण के साधन वंशावली दी रहती है। प्रयाग के किले में विद्यमान समुद्रगुप्त (३२६-३७५) के एक बड़े भारी स्तस्म पर के लेख में इस राजा की दिग्विजय का वर्णन है, जिसमें उस समय के उत्तर और दक्षिण भारत के प्रायः सभी राज्यों व राजाओं का उल्लेख है। इनमें से बहुत से नामों का तो ऐतिहासिक पता लग गया है, पर कितने ही अभीतक विवादग्रस्त हैं। बहुतों का मत है कि कालिदाल ने रघुवंश के चौथे वर्ग में रघु की दिग्विजय का वर्णन समुद्रगुप्त की हनी विजययात्रा के आधार पर किया है। इस लेख की भाषा और इसके पश्चात् के कुमारगुप्त के मन्दलोर के लेख (लन् १७३-७४ ईसवी) की कविता-शैली शब्द-प्रयोग तथा वर्णन का ढंग और अलंकारों की योजना कालिदास के काव्यों ले बहुत कुछ मिलती है। इस पर खे कुछ विद्वान् अनुमान करते हैं कि यह महाकवि इन्हीं गुप्त राजाओं के समय में हुए हैं। इस मत का कुछ-कुछ समर्थन दूसरे कई प्रमाणों से भी होता है। चन्द्रगुप्त द्वितीय (सन ३७५-४१३ ई० के सिक्कों पर से उसका दूसरा नाम विक्रमादित्य भी पाया जाता है और कालिदास के विषय में भी यह जनः श्रुति है कि ये विक्रमादित्य के दरबार में थे। मेघदूत में इन्हों ने हूणों का निवास स्थान वक्षु (Oxus ऑक्लस) नदी का तीर बताया है । इतिहास से पता चलता है कि हूण लोगों का निवास ऑक्सस के किनारे सन् ४५० ईसवी के लगभग था। इसके कुछ ही पश्चात् उन्होंने भारत पर आक्रमण किया। बहुत ले लेख मन्दिरों व देव-मूर्तियों की स्थापना के स्मारक होने से, च कई लेखों के मंगलाचरणों पर से वे उस

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